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३१०. भाषण : स्वदेशी व्रतके सम्बन्ध में

[ बम्बई]
जून ४, १९१९

गांधीजीने ४ जून, १९१९ को बम्बईके मोरारजी गोकुलदास भवनमें 'हिन्दी वस्त्र-प्रसारक मण्डली' के उद्घाटन समारोहकी अध्यक्षता की।

श्री जी० पी० रामस्वामी अय्यरने[१] अपने अंग्रेजीके भाषण में जो कुछ कहा था उसको अंग्रेजी न जाननेवालोंके लाभार्थ श्री गांधीने थोड़ेसे शब्दोंमें स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि जबतक आपमें से प्रत्येक-केवल स्वदेशी वस्तुओंका ही प्रयोग करनेकी प्रतिज्ञा न लेगा तबतक आप देशके उत्थानको आशा नहीं कर सकते। आप स्वदेशीको प्रतिज्ञा ले सकें तो वह सबसे अच्छी बात होगी। किन्तु यदि आप यह प्रतिज्ञा न ले सकें, तो आप यथासम्भव स्वदेशी वस्तुओंके प्रयोगका दृढ़ निश्चय कर लें । आप भारतमें बने सूती कपड़े के प्रयोगका निश्चय भी करें, जिससे भारतके जुलाहोंको ही नहीं, बल्कि उनके स्त्री-बच्चों को भी काम मिल सके। मुझे आशा है कि आप सब, श्री अय्यरने आज सायं जो कुछ कहा है उसे पूरी तरह हृदयंगम कर लेंगे और उसपर आचरण करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-६-१९१९

३११. पत्र : अली बन्धुओंको

[ बम्बई]
जून ५, १९१९

मुझे आपके पत्र मिले; उन्हें पाकर बड़ी खुशी हुई। आश्चर्य है कि श्री घाटको मेरा पत्र[२]नहीं मिला। मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ कि जबतक मैं आपको न समझा सकूँ तबतक आपको जैसा ठीक लगे वैसा ही करना चाहिए। मैं जो कुछ कह चुका हूँ उसके आगे मुझे यही कहना है कि वाइसरायके नाम आपके पत्रके मजमूनपर मैंने कई मित्रोंसे बातचीत की है और प्रायः वे सभी इस बातको मानते हैं कि आपने जो माँगें रखी हैं वे ऐसी नहीं हैं जिनमें से कुछ कम किया ही न जा सके; और आपका भारतसे हिजरत करनेका प्रस्ताव भी व्यावहारिक कदम नहीं है। यदि आप अनुमति दें तो आपने भारतसे

 
  1. (१८७९); त्रावणकोरके दीवान तथा हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारसके उप-कुलपति ।
  2. देखिए “पत्र : ओ० एस० घाटेको", ८-५-१९१९ ।