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३२४. पत्र : एन० पी० कॉवीको

बम्बई
[ जून ९, १९१९ को या उसके बाद ]

प्रिय श्री कॉवी,

इसी ९ तारीखके पत्रके लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करें। (मैं श्री मणिलाल व्यासको अपना मामला स्वयं वाइसराय महोदय के सम्मुख रखनेके लिए कह रहा हूँ ।) किन्तु मैं परमश्रेष्ठका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचता हूँ कि मैंने केवल व्यक्तिगत राहत देनेके लिए नहीं लिखा था । मैंने इस मामलेकी ओर परमश्रेष्ठका ध्यान इसलिए खींचा था[१]कि इसका सम्बन्ध एक महत्त्वपूर्ण व्यापक सिद्धान्तसे है । किन्तु आपके पत्रसे ऐसा ध्वनित होता है कि आपको ऐसे मामलोंमें भी किसी लोक-सेवी व्यक्ति द्वारा राहत पानेकी प्रार्थनाके औचित्यके बारेमें शंका है । लोकसेवियोंपर, जिस ढंगकी पाबन्दियाँ मुझपर लगा दी गई जान पड़ती हैं, उस ढंगकी पाबन्दियाँ लगानेसे उन्हें जो कठिनाई होती है वह इस मामलेमें भी स्पष्ट है । यद्यपि में उन्हें व्यक्तिगत रूपसे नहीं जानता, किन्तु चूंकि मुझे संयोगसे श्री मणिलाल व्यासका पता मालूम है, इसलिए मैंने उन्हें पत्र लिखकर सुझाया है कि राहत पानेके लिए क्या करना चाहिए। जैसा मैं अपने पहले पत्र में लिख चुका हूँ, मैंने कुछ दूसरे मामलोंके बारेमें सुना है, किन्तु मैं उन समस्त सम्बन्धित लोगोंके नाम नहीं जानता । स्वयं श्री मणिलाल व्यासका भी मामला तय होने में समय लगेगा । तबतक इन लोगोंको कष्ट सहन करना ही होगा, चाहे अन्तमें यही सिद्ध हो कि उन्होंने कोई अनुचित कार्य नहीं किया । इसलिए मैं अब भी सादर अनुरोध करता हूँ कि सरकार १८६१के अधिनियम ३के अन्तर्गत देशी राज्योंके निवासियोंको विदेशी समझनेकी नीतिपर पुनः विचार करे और उसमें संशोधन कर दे। वह इसके लिए सिन्धके अधिकारियोंके हुक्मोंसे प्रभावित लोगोंकी अर्जियोंकी राह न देखे ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० ६६५४) की फोटो नकलसे ।

 
  1. देखिए “पत्र : एन० पी० कवीको", २५-५-१९१९