पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/३९६

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३२५. पत्र : एन० पी० कॉवीको

[ जून ९, १९१९ के बाद ]

प्रिय श्री कॉवी,

श्री मणिलाल व्यासके सम्बन्धमें मैंने जो पत्र लिखा था, उसके सिलसिले में मुझे उनसे मालूम हुआ है कि वे अपने मामलेपर दरखास्त भेज चुके हैं। मुझे पूरी आशा उसके है कि उसपर परमश्रेष्ठ जल्दी ही अनुकूल विचार करेंगे ।

अंग्रेजी (एस० एन० ६६५५ ) की फोटो- नकलसे ।

हृदयसे आपका,

 

३२६. बाबू कालीनाथ राय

'यंग इंडिया' सिंडीकेटके सौजन्यसे, जिसके अधिकांश सदस्य सत्याग्रही ही हैं, श्री हॉर्निमैन के निर्वासन के बाद, इस पत्रके सम्पादनकी देख-रेख करनेकी अनुमति मुझे मिल गई है। इस तरहकी देख-रेखकी यह अनुमति मैंने इसलिए माँगी कि मैं नहीं चाहता कि इस पत्रमें कोई ऐसी बात छपे जो सत्याग्रह के सामान्य सिद्धान्तों, यानी सत्य और किसी व्यक्ति अथवा किसीकी सम्पत्तिको क्षति न पहुँचानेकी नीतिसे मेल न खाती हो। इस योजनाके अनुसार मैं अबतक सामान्य सम्पादकीयोंके रूपमें कुछ अग्रलेख भी लिख चुका हूँ। लेकिन इस अंकमें, 'ट्रिब्यून' नामक जिस पत्रका प्रकाशन बन्द हो गया है, उसके सम्पादक बाबू कालीनाथ रायके सम्बन्धमें जो कुछ भी दिया जा रहा है, उसकी पूरी जिम्मेदारी - अगर कोई जिम्मेदारी हो तो-मैं अपने ऊपर लेता हूँ । व्यक्तिश: मैं तो यही समझता हूँ कि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ उसमें अधिकारियोंकी दृष्टिसे भी कोई बात गलत या अनुचित नहीं है। किन्तु सम्भव है, वे अन्यथा ही सोचें । अतः जनता और यंग इंडिया सिंडीकेट, दोनोंको इसके लेखकके नामकी जानकारी दे देना अपेक्षित था ।

पंजाबके दंगोंके सम्बन्धमें मेरे मौनके कारण बहुत-से मित्रोंने मुझे गलत समझा है, और अब यह एक सर्वविदित बात है कि मुझे संन्यासी स्वामी श्री श्रद्धानन्दजी जैसे अनेक प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध नेताओंके सहयोगसे वंचित होना पड़ा है, यद्यपि मेरे प्रति उनका मैत्री भाव ज्योंका-त्यों बना हुआ है। लेकिन मैं अब भी यही मानता हूँ कि मौनपर आग्रह रखकर मैंने ठीक ही किया; क्योंकि मुझे तथ्योंकी कोई ऐसी निश्चित जानकारी नहीं थी कि उनके आधारपर में कुछ कहता। मेरी किसी भी सार्वजनिक घोषणाका अधिकारियोंकी कार्रवाईपर कोई अच्छा प्रभाव न पड़ता । किन्तु