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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है । इसलिए उन्हें भी चरखा लेकर सूत कातना चाहिए और इस प्रकार अपने अनुयायियों के सम्मुख आदर्श रखना चाहिए। माला लेकर रामनाम जपनेकी अपेक्षा चरखेकी गूँजमें आत्माकी सुन्दर वाणी प्रस्फुटित होगी ।

स्वदेशी हमारी मुख्य प्रवृत्ति है, क्योंकि वह स्वाभाविक है । हम अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति भूल गये हैं । स्वदेशीके त्यागसे लोग बर्बाद हो गये हैं । भारतके तीन करोड़ लोग अर्थात् उसकी आबादीका दसवाँ भाग एक ही वक्त रूखी-सूखी रोटी पाता है । हर साल करोड़ों रुपये विदेशों में जाते हैं । यदि यह करोड़ों रुपया हमारे देशमें रहे तो हम भूखसे मरते अपने भाइयोंको बचा सकते हैं। इसमें हमारी आर्थिक उन्नति भी समाई हुई है । और स्वदेशीके पालनमें जीव दया भी है। फिर स्वदेशी कपड़ा विदेशी कपड़ेसे सस्ता पड़ सकता है । मैं आपसे यह प्रार्थना करता हूँ कि आप अपना कपड़ा स्वयं हाथसे बनाकर या बनवाकर पहनें। स्वदेशीके पालनका व्रत कठिन नहीं है। हम इससे अपने भाइयोंका कष्ट दूर कर सकेंगे । यदि हम आठ घंटे चरखा चलायें तो एक रतल सूत कात सकते हैं । भारतमें इस समय जो कपड़ा बनता है वह केवल आबादीके चौथाई भाग तक पहुँच सकता है; इसलिए हमें बाकी तीन चौथाई भागको कपड़ा पहुँचाने लायक माल तैयार करना चाहिए। और यदि इस प्रकार चरखा चलने लगे तो उससे शुद्ध स्वदेशी व्रतका ही पालन नहीं होगा; बल्कि हम बहुत-सा कपड़ा तैयार कर सकते हैं ।

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, ६-७-१९१९
 

३७०. भाषण : बम्बईकी सभा में स्वदेशीपर[१]

जून २८, १९१९

हमें पहले शुद्ध स्वदेशीका व्रत लेना चाहिए और हमेशाके लिए स्वदेशी-व्रतका पालन करना चाहिए। जो मनुष्य व्रतधारी है, उसे अपने व्रतको निबाहनेके लिए सारे उपाय करने चाहिए, नहीं तो भविष्यमें व्रत टूटनेके अवसर आनेकी सम्भावना बनी रहती है। इसलिए प्रत्येक व्रतधारीको दूरदर्शितापूर्वक इस व्रतका पालन करनेके लिए हर सम्भव उपाय करना चाहिए। हमें हाथके बुने हुए कपड़े और सूतका उत्पादन बढ़ाने की दिशामें प्रयास करना चाहिए जिससे हम व्रतको निभा सकें। आज में साढ़े चार बजे महिलाओंकी सभामें गया था। मैंने उनसे जो विनती की है उसके परिणामस्वरूप उनमें से बहुत सारी स्त्रियाँ चरखा चलाना आरम्भ करेंगी। यदि स्त्री और पुरुष दोनों स्वदेशी आन्दोलन में शामिल हो जायें तो हमारा आन्दोलन बहुत ही अच्छे ढंगसे चलने लगेगा और हम अपने स्वदेशी- व्रतका पालन अच्छी तरह कर सकेंगे । स्वदेशीका बहिष्कारके साथ सम्बन्ध नहीं है । स्वदेशी व्रतको अपना कर्त्तव्य और धर्मका अंश समझकर ही मैंने उसे जनताके सम्मुख

 
  1. सभा गंगाधरराव देशपांडेने भाषण दिया था । इसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी ।