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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि यद्यपि प्रत्यक्ष मिलन कुछ कालके लिए सम्भव नहीं है तथापि आप मेरे मनसे कभी भी अलग नहीं होते । मुस्लिम प्रश्नके सम्बन्धमें सार्वजनिक कार्यकत्ताओं तथा अधिकारियों-दोनोंके साथ निकट सम्पर्क बनाये हुए हूँ ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया : होम : पॉलिटिकल : सितम्बर १९१९: संख्या ४०६-२८ ए (गोपनीय ) ।

 

३७३. भाषण : अहमदाबादमें स्वदेशीपर[१]

जून २९, १९१९

लॉर्ड कर्जनके शासनकालमें जब बंग-भंग हुआ उस समय स्वदेशीका प्रचार बड़े पैमानेपर किया गया था । किन्तु मैं जैसा बहुतसे स्थानोंपर बता चुका हूँ उसमें कई दोष रह गये थे । किसी भी नवीन आन्दोलनमें त्रुटियाँ होना सम्भव है । मेरा उद्देश्य इन दोषोंकी आलोचना करना नहीं है; किन्तु हम इस दृष्टिसे यह विचार करते हैं कि अब हमारे काममें ऐसे दोष न रहने पायें। उस समयके आन्दोलनमें दोष थे तो उत्साह भी बहुत था और गुण भी अनेक थे ।

हममें से जिन लोगोंको ठोस और अच्छा काम करना हो अथवा जो अच्छी शिक्षा लेना चाहते हों, उन्हें इन अनुभूत दोषोंका अवलोकन करना चाहिए और उन दोषोंको निकालकर शुद्ध विवरण तैयार करना चाहिए ।

पिछले आन्दोलनमें मुझे जो दोष दिखाई दिया है, वह यह है कि तब स्वदेशीकी प्रवृत्ति एक साथ बहुत व्यापक आधारपर चलाई गई थी । यह तो स्पष्ट है कि सब वस्तुएँ एक साथ स्वदेशी नहीं मिल सकतीं। प्रतिज्ञा तो उसीको कहा जा सकता है जिसे सामर्थ्यके अनुसार ठीक मात्रामें पाला जा सके। इस बातको समकोणके दृष्टान्तसे ठीक-ठीक समझा जा सकेगा । हमें अपनी जरूरतकी सब स्वदेशी चीजें एक साथ और बढ़िया नहीं मिल सकतीं। और यदि हम इस प्रकारकी प्रतिज्ञा करें तो उसका परिणाम अधरा ही निकलेगा । लेकिन यदि मन ऐसे धार्मिक उत्साहसे भरा हुआ हो तो सम्पूर्ण स्वदेशीकी प्रतिज्ञा लेकर-जो वस्तु हमें स्वदेशी नहीं मिलेगी हम उसके बिना ही काम चला लेंगे-ऐसा निश्चय करें तो इस दृढ़ताके परिणामस्वरूप हमें भविष्यमें अपेक्षित फलकी प्राप्ति होगी।

 
  1. स्वदेशी सभाकी ओरसे बुलाई गई सभामें अध्यक्ष-पदसे दिया गया भाषण । इसका सार यंग इंडिया, २-७-१९१९ में छपा था ।