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पत्र : डी० हीलीको

वह यूरोप में भले पनपे और फले-फूले परन्तु भारतमें ऐसा नहीं होगा । [साथ ही ] सत्याग्रहको शान्त करनेका तरीका -सत्याग्रहका जवाब- सत्याग्रहियोंकी माँगें मंजूर कर लेना ही हो सकता है। किसी देशमें सरकार तभी चल सकती है जब लोग कर अदा करके, सार्वजनिक पदोंपर नियुक्ति लेकर तथा अन्य ऐसे काम करके जिनसे यह प्रकट होता हो कि जनता सरकारसे सहमत है, उसका समर्थन करे। जब सरकार न्याय करती है - अर्थात् जब वह जनताकी सम्मतिके प्रति सहानुभूतिका भाव रखती है, तब, अस्थायी रूपसे विपरीत व्यवहार हो तो भी, समर्थन कर्त्तव्य बन जाता है । परन्तु जब सरकार अपना शासन जनताकी रायको ठुकराते हुए ही चलाती है, तब उसे अपने उस समर्थनसे पूर्णतया या आंशिक रूपसे वंचित करना भी कर्त्तव्य हो जाता है । और इस प्रकार समर्थनसे हाथ खींचनेको शुद्ध सत्याग्रह उस सूरत में कहते हैं जब उसमें किसी भी प्रकारकी कोई हिंसा नहीं रहती और जब उसमें असत्यका लेशमात्र भी पुट नहीं रहने पाता। इसलिए सत्याग्रही लोग सत्याग्रहकी पवित्रता और अमोघताको जानते हुए कभी हिंसात्मक अथवा असत्यपूर्ण कार्य करनेकी भूल न करेंगे और तबतक कानूनोंकी सविनय अवज्ञा न करेंगे, जबतक उन्हें इस बातका विश्वास नहीं हो जाता कि जनताकी ओरसे किसी प्रकारकी हिंसा न होगी । फिर चाहे उस परिस्थितिके उपस्थित होनेका कारण लोगों द्वारा सत्य और अहिंसाके सिद्धान्तका पूर्ण सहमतिसे अपनाया जाना हो अथवा सरकारकी सैनिक प्रवृत्तियाँ। पहली दशामें समस्त भारत प्रसन्नतापूर्वक सत्याग्रहमें भाग लेगा और संसारको उसका पदार्थपाठ देगा। दूसरी दशामें सरकारकी समझमें यह आने लगेगा कि शरीरबल चाहे जितना क्यों न प्रयुक्त किया जाये, सत्याग्रहियोंके साहसको कदापि नहीं तोड़ सकता । अंग्रेजी (एस० एन० ६७१३) की फोटो नकलसे ।

 

३७७. पत्र : डी० होलीको

आश्रम
जून ३०, १९१९

प्रिय श्री हीली,[१]

आपकी सूचनाके लिए धन्यवाद । मैं आज रातको बम्बई जा रहा हूँ। रविवारको वापस आनेकी आशा करता हूँ । यदि आपकी पूछताछ प्रस्तावित सविनय अवज्ञाके सम्बन्धमें है तो निवेदन है कि में अभी इस पूरे हफ्ते इसे शुरू नहीं करूँगा । विचार होनेपर स्थानीय अधिकारियोंको काफी पहले सूचित कर दूँगा । आशा करता हूँ कि मैं अपना पूरा कार्यक्रम सरकारको बता सकूँगा । यदि और कोई जानकारी हासिल

 
  1. महमदाबादके डिप्टी पुलिस सुपरिंटेंडेंट।