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३७६. सन्देश

[ जून २०, १९१९ के लगभग ][१]

चूँकि मैं अचानक ही गिरफ्तार किया जा सकता हूँ इसलिए मैं निम्नलिखित पंक्तियाँ सन्देशके रूपमें छोड़ रहा हूँ :

मैं समस्त भारतके लिए अपने सभी देशवासी पुरुषों और स्त्रियोंसे सविनय निवेदन कर रहा हूँ कि वे पूर्ण रूपसे शान्त रहें और किसीके जान-मालके प्रति कदापि किसी भी प्रकारकी हिंसा न करें। मेरे प्रति जो सबसे बड़ा अन्याय किया जा सकता है वह है मेरी गिरफ्तारीके पश्चात् और मेरी खातिर हिंसात्मक कृत्य कर बैठना । जो लोग मेरे प्रति स्नेहभाव रखते हैं वे अपना सच्चा स्नेह सत्याग्रही अर्थात् सत्य और अहिंसा में आस्था रखनेवाले तथा अपने कष्टोंके निवारणके लिए आत्मत्याग और दुःख सहनको ही एकमात्र साधन माननेवाले व्यक्ति बनकर ही प्रदर्शित कर सकते हैं। भारत सरकारसे मेरा यही सादर निवेदन है कि वह वर्तमान असन्तोषके कारणोंकी ओरसे आँखें मूँदकर भारतमें शान्ति कदापि स्थापित नहीं कर सकती। सत्याग्रहसे अराजकता और हिंसाका प्रादुर्भाव नहीं हुआ है। वह प्राणमयी शक्ति है और निश्चय ही उसके कारण वह संकटमय स्थिति, जो अनिवार्य थी, अपेक्षाकृत शीघ्र उपस्थित हो गई है । परन्तु सत्याग्रहने रोकथाम करनेवाली अव्वल दर्जेकी शक्तिका भी काम किया है । सरकार तथा जनता दोनोंको यह बात जान लेनी चाहिए और उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। सत्याग्रहके परिष्कारक एवं शान्तिप्रदायक प्रभावके बिना जितनी हुई उससे कहीं ज्यादा हिंसा हुई होती क्योंकि आपसमें एक दूसरेसे बदला लेते चले जानेकी प्रवृत्तिका परिणाम अशान्तिके सिवा और कुछ न होता । टर्की, फिलिस्तीन और मक्का शरीफके प्रश्नपर इंग्लैंडके रुखकी जो छाप मुसलमानोंके दिलमें बैठी हुई है, उससे उन्हें बहुत ज्यादा रोष है। भावी सुधारोंके प्रति इंग्लैंडकी जो मनोवृत्ति है उससे भारत- वासियोंके दिलोंसे इंग्लैंडपर से एतबार उठ गया है। वे चाहते हैं कि रौलट अधिनियम रद कर दिया जाये । दमन चाहे जितना किया जाये, उससे देशमें लेशमात्र भी शान्ति स्थापित नहीं हो सकती। कहने योग्य शान्ति तो मुसलमानोंकी भावनाओंको सन्तुष्ट करने और सुधारोंको उदार तथा विश्वासशील मनोवृत्तिसे देनेके द्वारा ही स्थापित की जा सकती है। ठीक वैसे ही जैसे स्वर्गीय सर हेनरी कॅम्बेल बैनरमैनने दक्षिण आफ्रि- काके मामलेमें किया था; शान्ति स्थापनाका दूसरा उपाय रौलट अधिनियमको अविलम्ब रद करके जनताकी रायकी पवित्रताको अंगीकार करना है। जनता जो कुछ कहती है वह उसकी आन्तरिक इच्छा है, ब्रिटिश सरकार हमेशा इसका सबूत माँगती आई है। आन्तरिक इच्छाको जाहिर करनेका यूरोपीय तरीका हिंसाके द्वारा अशान्ति उत्पन्न करना रहा है । [ भारतमें] सरकारने इस तरीकेका मुँह-तोड़ उत्तर दिया है।

  1. लगता है कि इसकी तारीख वही है जो पिछले शीर्षक की है ।