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३८०. 'नवजीवन' साप्ताहिक

जिस समय हॉर्निमैनको देश निकाला दिया गया उस समय 'यंग इंडिया' प्रति सप्ताह अंग्रेजी में बम्बईसे प्रकाशित होता था । भाई हॉर्निमैन निर्वासित हुए उसी समय [ बाम्बे ] 'क्रॉनिकल' के समाचारोंपर नियन्त्रण [ सेंसरशिप ] का आदेश भी जारी कर दिया गया ।

इस पत्रके व्यवस्थापकोंने ऐसी परिस्थितिमें 'क्रॉनिकल'का प्रकाशन बन्द रखा । इससे कुछ हदतक 'क्रॉनिकल' के उद्देश्यकी पूर्ति हो सके इस विचारसे 'यंग इंडिया' के व्यवस्थापकोंने उसे सप्ताह में दो बार प्रकाशित करनेका निश्चय किया और उसकी विषय-वस्तुकी व्यवस्थाका भार मुझे सौंपा। और हालाँकि अब 'क्रॉनिकल' अपने मूल रूपमें यथावत् प्रकाशित होने लगा है, तब भी 'यंग इंडिया' उपर्युक्त व्यवस्थाके अनुसार ही प्रकाशित होता जा रहा है। कुछ मित्रोंने मुझसे यह प्रश्न पूछा है, मैं यदि एक अंग्रेजी समाचारपत्रकी देखरेखका भार अपने ऊपर लिए हुए हूँ तो क्या यह मेरा कर्त्तव्य नहीं हो जाता कि मैं एक गुजराती समाचारपत्रका प्रकाशन भी करूँ? मेरे मनमें भी ऐसा सवाल उठा। मैं मानता हूँ कि मुझे हिन्दुस्तानको कुछ सन्देश देकर उसकी सेवा करनी है। मेरे मनमें जो कुछ विचार आये हैं वे कल्याणकारी हैं। मैं इन सब विचारोंको आपको समझानेका प्रयत्न कर रहा हूँ । समयकी कमीके कारण तथा अनुकूल परिस्थितियोंके अभाव में मुझे इस काममें इतनी सफलता नहीं मिली है जितनी कि मैं चाहता था । उदाहरणके तौरपर में देखता हूँ, सत्याग्रहके सम्बन्धमें भी लोगों में काफी भ्रान्ति फैली हुई है। मेरा विश्वास है कि मैं हिन्दुस्तानको इससे सुन्दर भेंट कदापि नहीं दे सकता। यह अमूल्य वस्तु तथा कुछ अन्य वस्तुओंको जनसमाजको दे देनेका लोभ तो मुझे सदासे ही रहा है। ऐसा करनेका सबसे बड़ा आधुनिक साधन समाचार- पत्र है । 'नवजीवन' अने 'सत्य' के संस्थापकोंने उनकी देखरेखका कार्य मुझे सौंपने और ये पत्र हर सप्ताह प्रकाशित हो सकें ऐसी व्यवस्था करनेका जिम्मा मैं अपने ऊपर लिया है। भाई इन्दुलाल कन्हैयालाल याज्ञिक गुजरातके सार्वजनिक जीवनमें बड़ा भाग ले रहे हैं। फिर भी उन्होंने 'नवजीवन' को अपना प्रमुख काम समझने और उसमें पूरी-पूरी मदद देनेकी प्रतिज्ञा ली है। ये संयोग आकस्मिक नहीं कहे जा सकते। यदि मैं इनका स्वागत न करूँ तो यह लज्जाकी बात होगी । और इसलिए हालाँकि एक वर्ष पहले मेरी शारीरिक अवस्था जैसी थी वैसी अब नहीं है; तो भी मैंने 'नवजीवन' चलानेके कामका बीड़ा उठाया है । मैं इस कार्यमें गुजरातकी जनताका आशीर्वाद चाहता हूँ और विद्वानोंसे इस पत्रमें अपने लेखादि भेजने [ का आग्रह करता हूँ ] तथा इसका प्रसार करने में और सब लोगोंकी मदद माँगता हूँ और इस बातका मुझे पूरा विश्वास है कि वह अवश्य मिलेगी ।

'नवजीवन' हर रविवारको प्रकाशित होगा, और ऐसी व्यवस्था की गई है कि जिससे यह पत्र रविवारके ही दिन गुजरातमें बहुत-सी जगहोंपर मिल सके।

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