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३९०. भाषण : बम्बई में स्वदेशीपर[१]

जुलाई ४, १९१९

श्री जराजाणीने हमारे सम्मुख भाषण करके हमें बताया है कि भारत ऐसा देश नहीं है जो कारीगरी और उद्योगमें पिछड़ा हुआ हो । उन्होंने तथा भाई नारणदासने स्वदेशी-भण्डार खोलकर बहुत अच्छा काम किया है। अब मुझे हरएक सभा में यह पूछना पड़ेगा कि कितने लोगोंने [ स्वदेशीके तीन व्रतोंमें से ] एक तरहका भी स्वदेशी व्रत लिया है। तीसरे प्रकारका व्रत इतना सरल है कि उसे व्रतोंमें शामिल करते हुए मुझे शर्म आई थी; कारण, जिसमें कष्ट न सहना पड़ता हो उसे व्रत कह ही नहीं सकते । तो फिर ऐसा सरल व्रत भी आजतक बहुत सारे लोगोंने क्यों नहीं लिया, यह मैं नहीं समझ सकता । बम्बईमें एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होना चाहिए जिसने तीनों व्रतोंमें से एक भी व्रत न लिया हो । यदि जनताका अधिकांश व्रतधारी हो जाये तो उसमें से कुछके मनमें यह विचार उठेगा कि हम यह माल कैसे प्राप्त कर सकेंगे तथा इसके फलस्वरूप या तो वे स्वयं उद्यम करेंगे अथवा दूसरोंसे करवाने का प्रयत्न करेंगे । इसलिए जिन भाइयोंने व्रत न लिया हो वे कल स्वदेशी-सभाके कार्यालयमें जाकर ये व्रत ले लें। लेकिन व्रत लेनेवालेको मनसे यह निश्चय करना चाहिए कि मैं स्वयं सूत कात लूँगा अथवा कतवा लूँगा, बुन लूँगा अथवा किसीसे बनवा लूँगा । यदि ऐसी भावना उसके मनमें न हो तो व्रत लेना बेकार है । श्रीमन्तोंको यह नहीं सोचना चाहिए कि वे पैसा देकर अपनी जरूरतका कपड़ा बना बनाया खरीद लेंगे। बल्कि ऊपर बताई हुई भावना तो उन्हें भी रखनी है । यदि हम आलस्यमें डूबे रहेंगे तो हमारा देश और भी कंगाल होता चला जायेगा । अन्तमें इतना ही कहूँगा कि आपको जैसे बने वैसे और अपनी सामर्थ्य के अनुसार जल्दी ही स्वदेशीका व्रत लेना चाहिए और उसका दृढ़तासे पालन करना चाहिए। समझे बिना कोई व्रत लेना और फिर उसका पालन न कर सकना - इससे तो अच्छा है कि व्रत लिया ही न जाये ।

[ गुजरातीसे ]
गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण,१३-७-१९१९
 
  1. यह सभा, स्वदेशी समाके तत्त्वावधान में आयोजित की गई थी। इसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी ।