लगता। यदि मेरी स्थिति के बारेमें [ किसीको ] कोई सन्देह होता तो ऐसा करना उचित भी था। कहनेका अभिप्राय यह है कि इस किस्म की कोई चुनौती देना नाटकीय प्रतीत होगा और ऐसा नाटकीय प्रदर्शन मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे षड्यंत्री बताते हुए भी स्वतन्त्र रहने देकर, पंजाब सरकारने काफी मूर्खता प्रकट की है। अब अगर उससे में, यह जानते हुए कि वह न तो मुझपर मुकदमा चलाना चाहती है और न ऐसा करनेकी उसकी हिम्मत ही है, यह कहनेकी मूर्खता करूँ कि 'तुम मुझपर मुकदमा क्यों नहीं चलाते', तो मैं अपने हाथों ही यह सारा असर धो बहाऊँगा । मेरी दलील आपकी समझमें आ रही है न? मैं आपके दिलमें यह पैठा देना चाहता हूँ कि आपका सुझाव स्वीकार करना सही न होगा।
हृदयसे आपका,
मो० क० गां०
- महादेव देसाई की हस्तलिखित डायरीसे।
- सौजन्य : नारायण देसाई
३८९. पत्र : छगनलाल गांधीको
बृहस्पतिवार, आषाढ़ १९७५ [ जुलाई ३, १९१९][१]
मैं यह कहना भूल गया था कि बगासरासे जो आदमी आया है उससे सिर्फ पढ़ानेका काम ही नहीं, बुननेका काम भी लेना।
भाई शंकरलालकी बराबर देखभाल करना। उन्हें कामके बारेमें सब जानकारी दे देना। मैंने बासे कहा है कि खाने-पीनेमें उन्हें हरी शाक-सब्जी आदि मिलती रहनी चाहिए।
भाई किशोरलालसे कहना कि मैंने उनके पास आज सुरेन्द्रके लिए एक रोटी भेजी है । बालुभाई शायद तुरन्त न भेज सकें, यह मानकर आज एक भिजवाई है। जरूरत हुई तो फिर भी भेज सकूँगा।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (एस० एन० ६७१६) की फोटो - नकलसे।
- ↑ पहले वाक्यसे यह प्रतीत होता है कि गांधीजीने यह पत्र अहमदाबादसे रवाना होनेके तुरन्त बाद लिखा था। वे ३० जूनको रवाना हुए थे। ३ जुलाई बृहस्पतिवार को पड़ी थी ।