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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारको कुछ नुकसान होनेकी बात बिल्कुल ही नहीं है। लेकिन यदि कदाचित् ब्रिटिश सरकार इस काममें दक्षिण आफ्रिकी सरकारकी मदद कर रही हो तो हम यहाँ उसका ऐसा कड़ा विरोध करेंगे कि उसे मजबूरन हमारा पक्ष लेना पड़ेगा। दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारने मेरे इस तर्कको स्वीकार किया था कि दक्षिण आफ्रिकामें स्थायी वास करनेके लिए आनेवाले लोगोंसे सम्बन्धित [ आव्रजन ] विधेयकमें रंगभेद नहीं होना चाहिए। लेकिन आज वहाँकी गोरी प्रजा हमारे ये अधिकार छीन लेनेके लिए तुली हुई है।

दुर्भाग्यसे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके लिए जी—तोड़कर काम करनेवाले योग्य पुरुष आज वहाँ नहीं हैं। इनमें से एक श्री सोराबजी शापुरजी अडजानिया थे जिनका दैवयोगसे स्वर्गवास हो गया है। दूसरे श्री अहमद मुहम्मद काछलिया थे, इनका भी देहान्त हो गया है और तीसरे श्री पोलक थे किन्तु वे दक्षिण आफ्रिकामें न रहकर आज—कल लन्दनमें रहते हैं । एक व्यक्ति अभी वहाँ है, लेकिन वे अपना काम करनेके बाद ही दूसरा काम हाथमें लेंगे।

संक्षेपमें, मैं इतना ही कहूँगा कि जब हम यह देखें कि दक्षिण आफ्रिका में रहने वाले भारतीय भाइयोंके अधिकार ऐसे अनुचित ढंगसे छीने जा रहे हैं तो हमें अवश्य उनकी मदद करनी चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि आप सब इन प्रस्तावोंका समर्थन करेंगे ।

(१) यह सभा, दक्षिण आफ्रिकी संघ—संसद द्वारा पास किये गये एशियाई भूमि और व्यापार संशोधन विधेयकके विरुद्ध कड़ा विरोध प्रदर्शित करती है; क्योंकि उससे सन् १९१४ में श्री गांधी और श्री स्मट्सके बीच हुआ समझौता भंग होता है तथा वह ट्रान्सवालमें कानूनन रहनेवाले भारतीयोंके अधिकारोंमें खलल डालता है । इसलिए भारत सरकारको साम्राज्यीय सरकारसे इस विधेयकको रद करवाना चाहिए।
(२) यह सभा, ट्रान्सवालमें बसनेवाले अपने भारतीय नागरिकोंके प्रति, सम्राट्के नागरिकोंके रूपमें मिलनेवाले जिनके आवास सम्बन्धी अधिकारोंपर अनुचित और बिना कारण प्रहार होता है और जो वीरतापूर्वक उसके विरुद्ध लड़ाई चला रहे हैं, अपनी सहानुभूति प्रकट करती है और उनका समर्थन करती है ।[१]
[ गुजरातीसे ]
गुजराती, २०-७-१९१९
 
  1. इन प्रस्तावोंको न्यू इंडियामें प्रकाशित प्रस्तावोंसे मिला लिया गया है ।