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४०५. पत्र : आर० पी० परांजपेको

[ बम्बई
जुलाई १४, १९१९]

प्रिय प्रो० परांजपे,

हमारे आदर्शोंमें अन्तर होनेपर भी अपने छात्रोंके सम्मुख भाषण देनेकी अनुमति देकर आपने सचमुच मुझपर बड़ी कृपा की। इसलिए मुझे इस बात से बहुत दुःख हुआ कि मेरी बातोंकी जब आपने आलोचना की तो छात्रोंने सीटी बजाकर अपना असन्तोष प्रकट किया। मुझे अपने छात्रोंके सम्मुख बोलनेकी अनुमति देनेके बाद आपने जो कुछ किया, उससे अधिक किसी बातकी अपेक्षा ही नहीं की जा सकती थी, और मैं चाहता हूँ आप उन्हें इस सम्बन्धमें मेरी भावनासे अवगत करा दें। मेरी यह निश्चित मान्यता है कि तालियाँ पीटना या सीटी बजाना तालीमका कोई हिस्सा नहीं है; अध्ययन—कालमें छात्रोंका मन ऐसा शान्त रहना चाहिए कि भावना या जोशको उभारनेवाली दलीलोंका उसपर कोई अनुकूल या विपरीत प्रभाव न हो। उनका कर्त्तव्य यह है कि वे हर बातपर विनीत भावसे विचार करें, उसे तोलें और जो बात उनके आवेगशून्य विवेकको उचित जान पड़े उसे अपने जीवनमें पिरोयें।


और अब दो शब्द आपकी आलोचनाके उत्तरमें; चूँकि आप मशीनोंके सम्बन्धमें मेरे विचारोंसे अवगत हैं, इसलिए आपने यह अनुमान लगा लिया कि भाषण में क्या—कुछ बोल रहा हूँ और फिर आपने मेरी आलोचना उसी अनुमानके आधारपर की, न कि मैंने सचमुच जो कुछ कहा[१] उसके आधारपर। इस सम्बन्धमें मैं यह कहना चाहूँगा कि मैं स्वदेशीके प्रचारको अपने मशीन सम्बन्धी विचारोंसे बिल्कुल अलग रख रहा हूँ और अगर आप, मैंने स्वदेशीके सम्बन्धमें जो विभिन्न प्रतिज्ञापत्र तैयार किये हैं, उन्हें देखें तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी। इसलिए गाड़ीवानों या लिपिकोंके भाग्यका इस आन्दोलनसे कोई सम्बन्ध नहीं है । इन दोनों वर्गोंके लोगोंको दूसरे धन्धे मिल गये हैं । स्वदेशीके बारेमें मेरा तर्क यह है कि हमारे किसानोंने, जिनकी पत्नियाँ पहले सूत कातती थीं और जो स्वयं उसे बुनते थे, अन्य कोई धन्धा पाये बिना इस धन्धेको बन्द कर दिया है । मैं राष्ट्रके इस खाली समयका उपयोग करना चाहता हूँ —ठीक वैसे ही जैसे कोई हाइड्रॉलिक इंजीनियर बड़े—बड़े जलप्रपातोंका उपयोग करता है । अगर आपको मशीनोंके बने अच्छे और सस्ते कचौड़ी—समोसे मिल जायें तब भी आप निश्चय ही उस समय तक नहीं चाहेंगे कि हमारी स्त्रियाँ कचौड़ी समोसे बनाना बन्द कर दें जबतक कि आप इस प्रकार उनके श्रमकी जो बचत होगी, उसे किसी उच्चतर

 
  1. देखिए " भाषण: स्वदेशीपर ", १२-७-१९१९ ।