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पत्र : डी० एन० नगरकट्टीको

उद्देश्यमें लगाने का उपाय न ढूँढ़ लें। आपके और मेरे सामने आज समस्या यह है कि भारतके २४ करोड़ किसान हर साल जो छः महीनेका समय लगभग बिना किसी कामके बिताते हैं, उसका क्या उपयोग किया जाये। मेरे विचारसे यह मजबूरन बेकारी जन-साधारणकी बढ़ती हुई गरीबीके लिए अगर प्रमुख रूप नहीं तो उतनी जिम्मेदार तो है ही, जितना कि करोंका भारी बोझ । आप कहते हैं कि अगर स्वदेशीके अनुयायी हमारी मिलोंमें बने कपड़ेका उपयोग करने लगेंगे तो गरीब लोग तकलीफमें पड़ जायेंगे। मेरा खयाल है, आपकी इस आपत्तिका पूरा निराकरण मैंने जो योजना सुझाई है, उसमें कर दिया गया है। इसके अन्तर्गत मिलोंमें बने कपड़े का उपयोग २० प्रतिशत लोग ही करेंगे और ये २० प्रतिशत लोग वे होंगे जिन्हें, सम्भव है, हाथ-कते सूतके मोटे किन्तु कलापूर्ण कपड़ोंसे सन्तोष न हो ।

अगर इतने से बात साफ नहीं हो पाई है, तो मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि कृपया दस-पाँच मिनट देकर इन तर्कोंकी काटमें जो कुछ कहना चाहें लिख भेजें। आप जानते हैं कि मैं आपकी आलोचनाकी बहुत कद्र करता हूँ । आप जैसे मैत्रीपूर्ण स्वरमें ज्ञान-भरी आलोचना करते हैं, उससे मैं बहुत कुछ सीखूँगा । और कहने की जरूरत नहीं कि अगर आपने मुझे मेरी कोई गलती दिखा दी तो मैं उसे स्वीकार करने और सुधारने में तनिक भी आगा-पीछा नहीं करूँगा ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० ६७४७) की फोटो नकलसे ।


४०६. पत्र : डी० एन० नगरकट्टीको

जुलाई १४, १९१९[१]

प्रिय महोदय,

यदि यह सूचित कर सकें कि निजामके राज्यमें हाथसे सूत कातनेका उद्योग अभी चल रहा है या नहीं और यदि चल रहा है तो किन-किन नम्बरोंका सूत काता जाता है और इस तरह हर साल कुल कितना काता जाता है, तो बड़ी कृपा हो। मुझे यह भी बताने की कृपा करें कि महाविभव निजामके राज्यमें कितने हाथ करघे चल रहे हैं और उनसे हर साल कितना और कितने मूल्यका कपड़ा तैयार किया जाता है।

हृदयसे आपका,

डी० एन० नगरकट्टी

सहायक उद्योग-निदेशक

हैदराबाद, दक्खिन

अंग्रेजी (एस० एन० ६७४८) की फोटो नकलसे ।

  1. नगरकट्टीने गांधीजीको इसका उत्तर १०-८-१९१९ को दिया था; देखिए एस० एन० ६७९५ ।