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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेना चाहिए कि हम अपने प्रति सहानुभूति रखनेवाले लोगोंके द्वारा की जानेवाली हिंसाकी वकालत कर रहे हैं। हम उसे बर्दाश्त करनेकी बात भी नहीं कहते। हम यही चाहते हैं कि हमें यह स्पष्ट रूपसे बता दिया जाये कि जब विपक्ष हिंसाका प्रयोग करता है तब सत्याग्रहियों और अ-सत्याग्रहियोंके बीच कोई भेद होना चाहिए या नहीं। असत्याग्रही, हो सकता है, हिंसामें पहल न करे; हम तो यहाँतक चाहते हैं कि अधिकारियोंकी ओरसे उत्तेजना मिलने या हिंसाका कोई कार्य किये जानेपर भी वे अपनेपर नियन्त्रण रखें; फिर भी यह प्रश्न तो उठता ही है कि क्या ऐसी हालत में सत्याग्रही किसी प्रकार असत्याग्रहियोंकी भावनाके लिए उत्तरदायी समझे जा सकते हैं। दोनोंके उत्तरदायित्वोंमें कुछ भेद जरूर होना चाहिए। आपका वक्तव्य ऐसे किसी भेदकी अपेक्षा नहीं रखता ।

(२) आगे आप कहते हैं- 'मुझसे पूछा गया है कि सत्याग्रही सत्याग्रह आन्दोलनसे उत्पन्न परिणामोंके लिए जिम्मेदार हैं या नहीं। मैंने उत्तर दिया है कि वे जिम्मेदार हैं ।" इस सम्बन्धमें हमको यह समझाया जाना चाहिए कि किन-किन परिणामोंको सत्याग्रहसे निकला हुआ कहा जा सकता है। क्या हमारे साथ हमदर्दी रखनेवाले या हमारा विरोध करनेवाले असत्याग्रहियोंका गैरकानूनी या हिंसापूर्ण आचरण भी“ आन्दोलनसे उत्पन्न परिणामोंमें" शामिल है ? जो लोग हमारा विरोध करते हैं सो इसलिए कि अधिकारियोंके मूर्खतापूर्ण आक्रामक रुख, हिंसा अथवा अपने ही विरोधियोंके अपघाती रुखका हमारी ओरसे कोई प्रतिकार नहीं होता । यदि यह ठीक है तो सवाल उठता है क्या शान्त असत्याग्रहियोंपर अधिकारियों द्वारा किये जानेवाले अत्याचारोंसे निकलनेवाले परिणामोंके लिए सत्याग्रहियोंको उत्तरदायी ठहराना न्याय संगत है ?

(३) और आगे चलकर आप कहते हैं. "इसलिए मैं उन्हें कह देना चाहता हूँ कि अगर हम इस लड़ाईको हिंसासे बिल्कुल अलग रहकर न चला सकते हों "क्या" 'हम' शब्दमें सत्याग्रहियोंसे सहानुभूति रखनेवाले असत्याग्रही भी शामिल हैं ? यदि ऐसा है तो फिर वही (१) और (२) में उठाये गये सवाल उठते हैं; और फिर क्या ‘हम' शब्दमें संख्या (१) और (२) में वर्णित परिस्थितियोंके परिणामस्वरूप असत्याग्रहियोंका सत्याग्रही आचरण भी शामिल माना जायेगा ?

(४) आप संख्या (३) को जारी रखते हुए सुझाव देते हैं कि " तो लड़ाई बन्द करनी पड़ सकती है।" हम इस बातपर खासतौरसे और जितना सम्भव है उतना जोर देकर कहना चाहते हैं कि हमारा इस स्थितिमें आन्दोलनको बन्द करना नैतिक तथा राजनैतिक दृष्टिसे आत्मघात करना ही सिद्ध होगा । हम प्रारम्भ में इस बातकी कल्पना कर सकते थे और हमने की भी थी। हमारे विचारमें इसका वास्तविक प्रतिकार आन्दोलनका त्याग करना नहीं, बल्कि कुछ समयके लिए कानूनोंका तोड़ना स्थगित कर देना है। इस बीच जनताको उचित रूपसे सत्याग्रह चलानेका शिक्षण और प्रशिक्षिण देकर उसे तैयार करना चाहिए ।

(५) "लेकिन जो ... उसका पाप हरएक सत्याग्रहीको लगेगा।” संख्या (१), (२) और (३) की बातें इसके साथ भी उतनी ही अधिक लागू होती हैं और सत्या-