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परिशिष्ट ६
गांधीजीके नाम रेवरेंड वेल्स ब्रांचका पत्र

रेवरेंड एम० वेल्स ब्रांच,
मैनेजर,
लखनऊ क्रिश्चियन स्कूल ऑफ कॉमर्स
लखनऊ, भारत
मई २, १९१९

श्री मो० क० गांधी,
बम्बई
प्रिय श्री गांधी,

प्रेम और सत्यमें मनुष्यको सामाजिक तथा राजनीतिक दृष्टिसे बिलकुल बदल देनेकी कितनी शक्ति है, इस विषय में आपके वक्तव्य मैंने अत्यन्त दिलचस्पी के साथ पढ़े । यह शिक्षा 'बाइबिल' की शिक्षासे इतनी अधिक मिलती-जुलती है और ईसामसीह के जीवन तथा व्यक्तित्वमें इस शिक्षाकी इतनी पूर्ण अभिव्यक्ति हुई है कि मुझे आपको यह पत्र लिखकर निम्नलिखित प्रश्न पूछने ही पड़ रहे हैं :

१. आपके विचारसे भारतके भावी विकासमें ईसाइयत ( यह आवश्यक नहीं कि इसका पाश्चात्य रूप ही ) का क्या हाथ रहेगा ?
२. क्या भारतकी आधुनिक जागृति ईसाई - शिक्षाका परिणाम है, या यह किसी और धर्मसे उद्भूत हुई है ?
३.(१) शिक्षक, (२) अवतार तथा (३) संसारके त्राताके रूपमें ईसामसीह के प्रति आपकी व्यक्तिगत भावना क्या है ?

मैं ये प्रश्न आपसे इसलिए नहीं पूछ रहा हूँ कि इन्हें प्रकाशित करूँगा। मैं तो सिर्फ अपनी इस जिज्ञासाको शान्त करना चाहता हूँ कि इनके सम्बन्ध में सचमुच आपका दृष्टिकोण क्या है । मैं भारतको प्यार करता हूँ और भारतके लोगोंको प्यार करता हूँ और मेरा यह व्यक्तिगत विचार है कि भारत एक दिन दुनियाको यह दिखायेगा कि ईसाइयतका प्रवर्तन जिस रूपमें हमारे त्राता ईसामसीहने किया उस असली रूपमें उसका क्या अर्थ है । मुझे लगता है कि समयकी माँग यह है कि उनके प्रच्छन्न अनुयायी, जिनमें से हजारों भारत में भी हैं, सामने आकर उनके प्रति अपनी आस्थाकी घोषणा करें ।

आपका एक ईसाई बन्धु,
एम० वेल्स ब्रांच

अंग्रेजी (एस० एन० ६६०८ ) की फोटो नकलसे ।