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पत्र : देवदास गांधीको

कि इस सबके बारेमें जाननेके लिए अखबार तक नहीं देखता। उलटे, कांग्रेसकी प्रतिदिनकी कार्रवाईको तो उत्सुकतापूर्वक देख लेता हूँ। परन्तु इसकी अपने मनमें चिन्ता नहीं होने देता।

मैं जानता हूँ कि रुद्र मेरी बहुत चिन्ता करते हैं। मेरी तबीयतके सारे समाचार उन्हें देना और उन्हें यकीन दिलाना कि आप सबकी प्रार्थना मुझे आरोग्य और सुख दिये बिना नहीं रहेगी।

सस्नेह,

तुम्हारा,
मोहन

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई

४५. पत्र : देवदास गांधीको

[ अहमदाबाद ]
अगस्त ३१, १९१८

[चि० देवदास,]

मैं कांग्रेस में नहीं गया; क्योंकि श्रीमती बेसेंट और तिलक महाराजसे बात करनेके बाद मुझे वातावरणमें बहुत कृत्रिमताका आभास मिला। मुझे ऐसे महत्त्वपूर्ण अवसरपर योजनाके सम्बन्धमें व्यर्थ वादविवाद करनेकी अपेक्षा यह अधिक आवश्यक प्रतीत हुआ है कि हम अपनी माँगोंको स्वीकार करानेके उपाय ढूँढ़ें और उनको कार्यान्वित करें। मैंने इस विषयमें अपने विचार उनके सम्मुख प्रस्तुत किये और यह कहा कि हमारे पास दो बड़े हथियार हैं। एक तो है लड़ाईमें अपनी सम्पूर्ण आहुति और दुसरा है अपनी योग्यताके बारेमें अपनी आत्माकी साक्षी प्राप्त करना। आत्माकी साक्षी मिल जानेसे ऐसा आन्तरिक बल प्राप्त होता है, जिसके सामने कोई नहीं टिक सकता। दूसरा उपाय यह है कि हम अपनी माँगके सम्बन्धमें दृढ़ निश्चय करके उसपर भूतकी तरह अड़े रहें और उसको स्वीकार करानेके लिए मृत्युपर्यंत लड़ें। दोनों नेताओंने इन दोनों विचारसूत्रोंको ठुकरा दिया, इसलिए मुझे खयाल हुआ कि कांग्रेसमें मेरा जाना व्यर्थ है और न जानेपर भी मैं अपने विचार अप्रत्यक्ष रूपसे ठीक-ठीक प्रकट तो कर ही सकता हूँ। इसी खयालसे मैंने कांग्रेस में जानेका विचार छोड़ दिया।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४