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वाइसरायका भाषण

भारतीय अखबारोंमें कोई विशेष उत्साहका भाव नहीं है और न वे इस बातसे ही बहुत खुश हैं कि यह आयोग एक शाही आयोग न होकर एक ऐसा आयोग है जो अपनी रिपोर्ट भारत सरकारको देगा। मेरी नम्र सम्मतिमें तो भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया आयोग भी उतना ही प्रभावशाली हो सकता है जितना कि कोई शाही आयोग। और हमें अपने ही समय में शाही आयोगोंके भी असफल होनेके बहुत सारे उदाहरण मिले हैं। लॉर्ड मॉर्ले जिन दिनों सरकारकी सक्रिय सेवामें थे, उन दिनों वे कहा करते थे कि उन्हें इन आयोगोंका इतना बुरा अनुभव है कि उनमें उनका कोई विश्वास ही नहीं रह गया हैं। फिर भी चूंकि आयोगोंकी नियुक्ति अंग्रेजों की एक कमजोरी है, अतः उन्हें अनिच्छापूर्वक उनमें शरीक होना ही पड़ा। फिर भी पंजाब - जैसे मामले में ऐसी जाँच करना तो एक स्वाभाविक चीज है। अतः हमें इस कारण कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए कि यह जाँच आयोग शाही आयोग नहीं है। लेकिन इसके सदस्योंके चुनावपर विचार करनेका हमें पूरा अधिकार है और यद्यपि लॉर्ड हंटर कोई ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्हें संसार भर में प्रतिष्ठा प्राप्त हो फिर भी इतनी प्रतिष्ठा तो प्राप्त है ही कि न्याय न करनेपर उन्हें उसके खोनेका भय हो। आखिरकार उनके चुनाव के लिए मुख्यतः श्री मॉण्टेग्यु ही जिम्मेदार हैं, और यद्यपि उन्होंने सरकार द्वारा अंगीकृत या स्वीकृत कुछ सदस्योंका सर्वथा अनुचित तथा अनपेक्षित बचाव करने में बड़ा उत्साह दिखाया है, फिर भी मैं तो उनके चुनाव या इरादेमें किसी प्रकार सन्देह नहीं करना चाहूँगा। और न दूसरे सदस्योंकी नियुक्तिपर ही कोई निरर्थक आपत्ति की जा सकती है। लेकिन हम बम्बई के लोगोंको सर चिमनलाल सीतलवाडकी नियुक्तिपर अधिक से अधिक सन्तोष होना चाहिए - इसलिए नहीं कि वे एक योग्य वकील हैं पर इससे भी बढ़कर इसलिए कि वे स्वर्गीय फीरोजशाह मेहताके एक शिष्य और सच्चे अनुगामी हैं। हम आश्वस्त रह सकते हैं कि वे उतनी ही निर्भीकता और निष्पक्षतासे काम करेंगे जितनी निर्भीकता और निष्पक्षतासे सर मेहता करते थे और कठिन से कठिन परिस्थितियोंमें भी विचलित नहीं होंगे। इसके अतिरिक्त उनकी नियुक्ति शायद इस बातका भी संकेत देती है कि भारत सरकार आयोगमें ऐसे निष्पक्ष लोगोंको रखना चाहती है जिन्होंने इस सम्बन्धमें पहलेसे ही कोई मत स्थिर नहीं कर रखा है या यों कहें कि कोई विचार व्यक्त नहीं किया है। और अगर हम आशा करें कि साहबजादा सुलतान अहमदखां भी इतना तो करेंगे ही, तो यह अनुचित नहीं होगा। साथ ही में इतना और कहना चाहूँगा कि जहाँ अंग्रेज लोगोंने पूर्वगृहीत धारणाएँ न बना ली हों और जहाँ उनपर कुछ बातों को लेकर पागलपन सवार नहीं हो गया हो, जैसा कि कभी-कभी हम सबपर हो जाता है, वहाँ वे बहुत निर्भीक होकर न्याय करते हैं और अन्यायका पर्दाफाश करके ही दम लेते - भले ही यह अन्याय उनके भाई-बन्दोंने ही क्यों न किया हो। इसलिए मेरा नम्र सुझाव है कि अभी आयोग के सदस्यों के सम्बन्ध में कोई विचार नहीं ही प्रकट करना चाहिए। आप उसमें विश्वास रखें और वाइसराय महोदयने वातावरणको शान्त बनाये रखनेका जो अनुरोध किया है उस ओर ध्यान दें। हैं