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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन यह जानकर मुझे बहुत अधिक सन्तोषका अनुभव होता है कि आखिरकार आयोगके सही निष्कर्षपर पहुँचनेसे सम्बन्धित सारी बातें बहुत हदतक हमारे पंजाबी भाइयोंपर निर्भर करती हैं। जिन्हें तथ्योंकी जानकारी है वे लोग अगर निर्भीकतापूर्वक सत्य कहनेके लिए आगे आयेंगे और अगर पंजाबमें ऐसे गिरे हुए लोग नहीं हैं जो व्यक्तिगत लाभकी आशामें अपने-आपको बेच देने को तैयार हों तो हमें आशंकित होनेकी कोई जरूरत नहीं। हमारा मामला इतना मजबूत है, और जो अन्याय पहले ही प्रकाशमें लाये जा चुके हैं वे इतने स्पष्ट हैं, कि अगर पंजाबके लोग सिर्फ अपना कर्त्तव्य निभानेकी चिन्ता करें तो हमें असफलताका कोई भय नहीं होना चाहिए। चम्पारनके मामलेमें न्याय क्यों किया गया? मूलतः और मुख्यतः इसलिए कि चम्पारनके गरीब और दलित काश्तकारोंने सत्य कहनेका साहस दिखाया। क्या पंजाब के लोग इतना भी नहीं करेंगे? इसका तो केवल एक ही उत्तर हो सकता है कि हाँ, अवश्य करेंगे। लेकिन हमें उनकी मदद करनी है और उनकी मदद हम समितिके सदस्योंकी कमजोरी बताने में या इसके शाही आयोग न होनेका रोना रोने में पन्ने रँगकर नहीं कर सकते। उसका सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि हम ऐसा प्रयत्न करें जिससे किसी पक्षकी ओरसे जासूसी न हो और पंजाबके लोग स्वच्छन्द और मुक्त वातावरणमें अपना काम कर सकें। और इस सम्बन्धमें यह सोचकर मनको बड़ा सन्तोष मिलता है कि हमें सतत जागरूक तथा हर समय और हर स्थानपर हमारे बीच विद्यमान रहनेवाले पंडित मदनमोहन मालवीयका साहाय्य प्राप्त है तथा उनकी सहायताके लिए संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द और दुर्धर्ष पंडित मोतीलाल नेहरू-जैसे लोग मौजूद हैं। हमें परिणामोंके बारेमें डरने की कोई जरूरत नहीं।

यह बात ध्यान देने लायक है कि समिति पंजाबके मामलोंकी ही नहीं, प्रेसिडेंसी[१]- के मामलोंकी भी जांच करनेवाली है। असन्तोषके वास्तविक कारणोंको दिखा सकने में हमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए और न यहाँकी तथा पंजाबकी घटनाओंके परवर्ती परिणामोंमें कुल मिलाकर जो एक शुभ अन्तर है, उसे ही स्पष्ट करनेमें कोई दिक्कत होनी चाहिए। समितिके बारेमें विचार समाप्त करनेके पूर्व एक और बात कहना जरूरी है। कहा गया है कि समितिको अमुक बातोंपर विचार करना है। इसका मतलब क्या है? मुझे तो लगता है कि इन बातोंमें पंजाबकी विशेष अदालतोंने, चाहे वे विशेष आयोग हों या सैनिक अदालतें, जो निर्णय दिये हैं उनकी जाँच करना और जो सजाएँ दी गई हैं उन्हें सम्पूर्ण अथवा आंशिकरूपसे रद करनेका अधिकार भी शामिल है। लेकिन हम इतने महत्त्वपूर्ण मामलेमें कोई भी बात यह मानकर नहीं छोड़ सकते कि ऐसा तो होगा ही। इसलिए जैसे भी हो, हमें इस मुद्देको स्पष्ट करवा लेना है।

अब जहाँतक क्षतिपूर्ति विधेयकका सवाल है, मेरा खयाल है कि यदि वाइसराय महोदयने आयोगके साथ इस विधेयककी चर्चा न की होती तो यह बात उनके लिए

  1. अभिप्राय बम्बई प्रेसिडेंसीसे है।