पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/२३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११८. देशी रियासतोंकी प्रजा

श्री एम० टी० दोषीने मुझे कराचीके जिलाधीशके साथ गत १३ अगस्तको हुई अपनी भेंटका विस्तृत वृत्तान्त भेजा है।

श्री दोषी काठियावाड़के वांकानेर नगरके निवासी हैं। वे एकाउन्टेन्ट [हिसाब-किताब रखनेवाले कर्मचारी] और व्यवसाय सम्बन्धी तालीम देनेवाले शिक्षक हैं। वे कराचीकी एक पेढ़ीके व्यवस्थापक भी रह चुके हैं। न्यायाधीश द्वारा प्रेषित एक सूचनाके फलस्वरूप यह भेंट हुई थी, जिसमें श्री दोषीको लिखा गया था कि वे आकर उनसे मिलें। मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि इस प्रकार लोगोंको सूचना द्वारा बहुत ज्यादा बुलाया जाने लगा है। और यह अधिकारियों तथा जनताके लिए समानरूपसे पतनकारी है। सार्वजनिक कार्योंको करनेका यह तरीका गैरमुनासिब है। लोगोंको इस प्रकार बुला भेजनेका जिला मजिस्ट्रेटोंको कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यदि श्री दोषीने कोई अपराध किया था तो उनपर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी। लेकिन गैरअदालती राजनैतिक ढंगकी चेतावनी देना व्यर्थका भय पैदा करता है और उस व्यवस्थाके अन्तर्गत जिसे राजनीतिक जासूसी व्यवस्था कहा जा सकता है कोई भी अपने आपको सुरक्षित नहीं मान सकता।

कुछ प्रारंभिक प्रश्नोंके पश्चात् श्री दोषीसे पूछा गया कि क्या आपने सत्याग्रहकी शपथ ली है और क्या आप समाचारपत्रोंको पत्र लिखते रहे हैं? श्री दोषीसे यह भी कहा गया कि "राजनीतिक आन्दोलन से गत अप्रैलके जो कुपरिणाम निकल चुके हैं उनके बावजूद आप राजनीतिक हलचल और सत्याग्रह शुरू करना चाहते हैं"। वार्तालापका निम्नलिखित वृत्तान्त दिलचस्प है इसलिए उसे ज्योंका-त्यों - जैसा कि श्री दोषीने लिख भेजा है - दिया जा रहा है:

दोषी- मैं निस्संदेह चाहता हूँ कि राजनैतिक तथा अन्य सब प्रकारको राष्ट्रीय हलचलें, यहाँ तथा अन्य स्थानोंमें चलती रहें। गड़बड़ी फैलानेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है और न मैं ऐसे कार्योंका समर्थन करता हूँ जिनसे अशांति उत्पन्न हो। मैंने किसीको खतरेमें डालनेका कोई कार्य नहीं किया है।
जि० मजिस्ट्रेट- जब श्री गांधीने सत्याग्रह शुरू किया था तब वे किसीको खतरे में डालना नहीं चाहते थे, लेकिन आपको मालूम है कि पंजाब तथा अन्य स्थानोंमें क्या हुआ; आप उसी चीजकी यहाँ पुनरावृत्ति करना चाहते हैं।
दोषी- मेरे खयालसे "पंजाब" की अशांतिपूर्ण घटनाएँ महात्मा गांधीके किसी कार्यके कारण नहीं बल्कि वहाँके अफसरों द्वारा एक अजीब-सा रुख अख्तियार करनेके कारण घटी थीं। फिर भी में कोई ऐसा कार्य नहीं करता जिससे