पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह नहीं है कि कमजोर लड़कोंको अपने सहपाठियोंपर दोषारोपण करके स्वयं अपनी सजासे मुक्ति पानेका लोभ दिया जाये, बल्कि यह है कि उनके जोशको ठीक मार्गपर प्रवाहित और निर्देशित किया जाये। यदि अधिकारीगण विद्यार्थियोंमें कटुता उत्पन्न करके उन्हें छल और बेईमानीके तरीके अपनानेपर मजबूर करनेका इरादा रखते होते तो भी जो रास्ता उन्होंने अख्तियार किया उससे अधिक कारगर रास्ता और नहीं हो सकता था।

लेफ्टिनेन्ट गवर्नर महोदयने अब एक जाँच समिति नियुक्त की है। यह जाँच समिति 'लीडर' के सम्वाददाताके कथनानुसार पूर्णतः सन्तोषजनक नहीं है। कुछ भी हो, लाहौर मैडिकल कॉलेज इस समितिसे कोई सरोकार न रखेगा। अधिकारीगण अपने कार्योंकी आलोचना कैसे होने देंगे! शक्ति बनाये रखने तथा दण्ड देनेकी यह अप्रतिबंधित इच्छा सहन करने योग्य नहीं है। मुझे आशा है कि लेफ्टिनेन्ट गवर्नर महोदय बीचमें पड़ेंगे और इस बातकी भी आशा है कि समस्त भारत आग्रह करेगा कि इन मामलोंकी जाँच कराई जाये। परन्तु यदि अधिकारीगण अपने हठपर अड़े ही रहें तो मेरे विचारसे इसका कोई उपाय ढूँढ़ना आवश्यक हो जायेगा। यदि स्वाभिमान और मर्दानगी बेचकर शिक्षा प्राप्त करनी है तो यह सौदा बहुत ही महँगा है। "मनुष्य केवल रोटी खाकर ही जीवित नहीं रहता।" जीविकोपार्जनके अथवा अच्छेसे-अच्छे पदोंपर पहुँचनेके साधनोंको प्राप्त करनेकी अपेक्षा आत्माभिमान एवं चारित्र्यबल अधिक मूल्यवान है। मुझे दुःख है कि अनेक विद्यार्थियोंने अपने कॉलेजोंसे निष्कासनका इतना अधिक सन्ताप माना। अभिभावकों तथा विद्यार्थियों, दोनोंको शिक्षा-सम्बन्धी अपने विचार बदलने चाहिए। आजकल शिक्षाका उद्देश्य केवल जीविकोपार्जन और समाजमें प्रतिष्ठित पद प्राप्त करना माना जाता है। यह आकांक्षा निन्द्य नहीं है परन्तु जीवनमें यही सब कुछ नहीं है। धन और प्रतिष्ठा प्राप्त करनेके और भी सम्मानपूर्ण रास्ते हैं। जीवनमें ऐसे अनेक स्वतन्त्र धंधे हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति स्वाभिमानको खोने की आशंका किये बिना अपना सकता है। समाजमें प्रतिष्ठा प्राप्त करनेके लिए ईमानदारी और निस्वार्थ सेवासे अधिक श्रेष्ठ और स्वच्छ और कोई साधन नहीं है। इसलिए जितना ठीक है उतना कर चुकनेके बाद भी यदि विद्यार्थीगण अपने कॉलेजोंके दरवाजे बन्द पाते हैं तो उन्हें हतोत्साह नहीं होना चाहिए बल्कि जीविकोपार्जनके अन्य साधनोंको अपनाना चाहिए। और अधिकारियोंके दुराग्रहके प्रति सविनय विरोध प्रदर्शन करके अन्य विद्यार्थी भी अपने कॉलेजोंसे निकल आयें तो उससे न तो उनकी और न भारतकी ही कोई क्षति होनेवाली है - प्रत्युत उससे लाभ ही होगा।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १-१०-१९१९