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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राष्ट्रीय कल्याणसे सम्बन्धित गति-विधियोंको नहीं त्याग सकता, क्योंकि मैं मानता हूँ कि मेरी अपनी तथा मेरी रियासतकी भलाई मेरे देश - भारतकी भलाईमें सन्निहित है।

श्री दोषीके लेखसे लिये गये उपर्युक्त उद्धरण पढ़नेसे दुःख होता है। उससे प्रकट होता है कि राजनैतिक आन्दोलन चलाने में कैसी कठिनाई उपस्थित हुआ करती है। किसी भी दिन जिला मजिस्ट्रेट जो कुछ कहे उसे कर सकता है। श्री दोषीको ब्रिटिश भारतसे निष्कासित कर सकता है और इस प्रकार उनके भविष्यको बरबाद कर सकता है जैसा कि श्री मणिलाल व्यास तथा औरोंके साथ हो चुका है।

इस प्रकारके नोटिसों तथा वार्तालापके औचित्य के आम सवालके अलावा देशी रियासतों की प्रजाकी हैसियतका सवाल बहुत बड़ा महत्त्व रखता है। यदि कोई कानून लोगोंको छोटे हलकोंमें बिना किसी मुकदमे या सुनवाईके एकदम हवालात में डालना सम्भव बनाता है तो अवश्य ही उस कानूनको बदल देना चाहिए। यह स्पष्ट है कि ऐसी नजरबन्दीकी अपेक्षा जिसमें भरण-पोषणका कोई प्रबन्ध न हो, कारावास बेहतर है। सरकार देशी रियासतोंकी प्रजाको ऊँचे पदोंपर नियुक्त करती है और दूसरी ओर छोटे अफसरोंको उनके साथ विदेशियों जैसा व्यवहार करनेकी छूट देती है। सर प्रभाशंकर पट्टणी श्री मॉण्टेग्युके आदरणीय सहयोगी बन सकते हैं। माननीय श्री लल्लूभाई सामलदास एक विश्वसनीय परिषद् सदस्य हैं। सरकार देशी रियासतोंकी प्रजा द्वारा की गई वित्तीय तथा अन्य प्रकारकी सहायताका स्वागत करती है और उनपर उपाधियोंकी वर्षा करती है। वे राजभक्त" कहे जाते हैं। विदेशियोंकी राजभक्तिका क्या अर्थ हो सकता है? क्या विदेशियोंसे उस राज्यके प्रति राजभक्त होनेकी आशा की जा सकती है जिसके वे निवासी नहीं हैं? क्या अधिराज्य अपने अधीन मित्र राज्योंके लोगोंसे सब कुछ ले सकता है और बदलेमें कुछ भी नहीं देगा? सिन्धमें जो नीति लागू की गई है वह आत्मघातिनी नीति है। आशा करनी चाहिए परमश्रेष्ठ वाइसरायकी सरकार इस नीतिका प्रारम्भ में ही अन्त कर देगी और वह पनपने न पायेगी।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १-१०-१९१९