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श्मशान-सुधार

श्री छोटालाल तेजपालने हमें तीन-चार पत्र लिखे हैं और वे जो आन्दोलन चला रहे हैं, उससे सम्बन्धित कुछ साहित्य भी भेजा है। वे सब पत्र बहुत लम्बे हैं और सम्बन्धित अन्य अनेक तथ्योंसे इतने भरे हुए हैं कि हम उन्हें प्रकाशित नहीं कर सकते।[१] इसलिए हम इनके उद्देश्यमात्रको यहाँ प्रस्तुत करनेका विचार रखते हैं, क्योंकि यह उद्देश्य हमें उपयोगी जान पड़ा।

मुर्दोंकी व्यवस्था करनेमें दिन-प्रतिदिन कष्ट बढ़ता चला जा रहा है। गरीबोंको खासतौर से दिक्कतका सामना करना पड़ता है। अनेक लोगोंको तो मुर्दे उठवाने तककी सुविधा नसीब नहीं होती। देशमें समय-समयपर प्लेग आदिका प्रकोप होता रहता है और उस समय लोगों की स्थिति अत्यन्त करुणाजनक हो जाती है। इसके अतिरिक्त जबतक मुर्दे जलते रहें तबतक बैठे रहने में समय व्यर्थ ही बरबाद होता है। अनेक बार चिताकी लकड़ियाँ कुछ इस ढंगसे रची जाती हैं कि उनसे मुर्दा पूरी तरह से ढक नहीं पाता।

इन कारणोंसे कुछ समयसे श्री छोटालाल मुर्दोंको ले जाने तथा जलानेकी क्रियामें सुधार करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। हमें लगता है कि इस प्रयत्नको प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इनका सुझाव यह है कि मुर्दोंको वाहनमें ले जाया जाये और श्मशानका निर्माण ऐसी शास्त्रीय पद्धतिसे किया जाये जिससे सब मुर्दोंको एक ही भट्टीमें डाला जा सके और वे तेज आगमें पड़कर तुरन्त ही राखमें परिवर्तित हो सकें। ऐसा करने से समय और धनकी बचत होती हैं तथा धार्मिक भावनाको तनिक भी ठेस नहीं पहुँचती। इतना होनेपर भी यह अधिक उचित होगा कि अभी तुरन्त ही मुर्दोंको वाहन में ले जाने और वैज्ञानिक पद्धतिसे दाह संस्कार किये जानेकी क्रियाको अनिवार्य न बनाकर उसे लोगोंकी मर्जीपर छोड़ दिया जाये। ऐसे विषयों में लोक-शिक्षणकी आवश्यकता होती है। अनुचित रिवाजोंको भी धीरे-धीरे ही दूर किया जा सकता है। लोगों द्वारा ज्ञानपूर्वक अथवा श्रद्धापूर्वक लेकिन स्वेच्छा से ग्रहण किये गये परिवर्तनको ही सही अर्थों में सुधार कहा जा सकता है। इसलिए जहाँ-कहीं कुछ साहसी लोग हों, धनकी व्यवस्था हो और जहाँ थोड़ेसे लोग भी अग्निदाहकी नवीन पद्धतिको स्वीकार करनेको तैयार हों यदि वहाँ वाहन तथा अग्निदाहका प्रबन्ध किया जाये और वह प्रबन्ध अच्छा भी हो तो यह महत्त्वपूर्ण पद्धति थोड़े ही समय में लोकप्रिय हो जायेगी और महामारी आदि रोगोंके फैलनेपर गरीब लोग तो इसका सहर्ष स्वागत करेंगे ही।

[गुजरातीसे]

नवजीवन ५-१०-१९१९

  1. देखिए "पत्र: छोटालाल तेजपालको", १७-९-१९१९।

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