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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चरखी और धुनाईको किया सहल बनानेवाली कोई पद्धति निकाल सकते हैं या नहीं; और चरखे तथा खड्डियोंमें यथासम्भव सुधार कर पाते हैं या नहीं।

कुछ लोग यह मानते जान पड़ते है कि श्री गांधीके आन्दोलनमें मशीनों अथवा प्राचीन यन्त्रों में सुधार किये जानेकी बातके लिए कोई स्थान ही नहीं है। यह भ्रामक धारणा है। उनका विचार यह है कि यन्त्र अथवा यन्त्र सम्बन्धी सुधार ऐसे होने चाहिए जो हमारे देशके लोगोंको ठीक जान पड़ें और वे उन सुधरे हुए यन्त्रोंका उपयोग अपने घरोंमें कर सकें। इस उद्देश्यको ध्यान में रखकर जितने सुधार हो सकें उतने सुधार कराने की ओर श्री गांधीका ध्यान सदैव बना रहता है। सारे किसान और कारीगर बड़े-बड़े कारखानों में काम नहीं कर सकते । किसान अपने खेत नहीं छोड़ सकते। खेतीके उपरान्त उनके घरोंमें कुछ उद्योग दाखिल किये जा सकें ऐसे साधनों और उपायोंकी खोज करना तथा योजना बनाना प्रत्येक देशभक्तका कर्त्तव्य है।

अत: [इस सम्बन्ध में] श्री रेवाशंकर जगजीवन मेहताने पुरस्कार[१] देनेका जो वचन दिया है हम इस अंक में उसकी घोषणा करते हैं और उनकी इस भेंटका स्वागत करते हैं। चरखमें सुधार किया जाना हमारी सबसे पहली जरूरत है। सुधार न हों तो भी सूत तो काता ही जायेगा। फिर भी यह तो स्पष्ट है कि यदि चरखेमें इतना सुधार किया जा सके कि दूना सूत काता जा सके तो आन्दोलन अधिक तेजीसे चले और कातनेवालोंकी कमाई भी बढ़े। वर्तमान चरखेमें सुधार हो सकता है, इस बारेमें तो कोई सन्देह ही नहीं है। कुछ स्वदेशाभिमानी सज्जन पहलेसे ही इस दिशा में काम कर रहे हैं। गोंडलके एक होशियार कारीगरने पीतलका एक हल्का-फुल्का चरखा बनाया है। उसमें कारीगरका मुख्य उद्देश्य अधिक सूत कातना नहीं है; यह चरखा इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर बनाया गया है कि वह एक स्थानसे दूसरे स्थानपर ज्यादा आसानीसे ले जाया जा सके और अधिक समयतक टिक भी सके। इस चरखेमें अभी यह कारीगर और भी सुधार कर रहा है।

राजकोटमें एक कारीगर ऐसा चरखा बना रहा है जिसमें एक साथ तीन तकुए चढ़ाये जा सकें और उतने ही समय में चौगुना सूत निकल सके। भड़ौचमें एक साथ दो तकुए चलाये जानेवाला चरखा बन चुका है। इसलिए इनामी चरखा बनाने में मुश्किल नहीं आनी चाहिए। हमें आशा है कि हमारे पाठक इस इनामकी खबर कारीगरोंतक पहुँचायेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि [आज] शिक्षित-वर्ग द्वारा कारीगर आदि अशिक्षित-वर्गसे अलहदा होनेके बजाय उनके जीवनमें भाग लेने और अपने प्राप्त ज्ञानसे उन्हें परिचित करानेकी आवश्यकता है। देशमें कारीगरी अथवा शोधशक्तिकी कोई कमी नहीं है, लेकिन प्रोत्साहन के अभाव में देश इस शक्तिका उपयोग नहीं कर पाता। हमें आशा है कि श्री रेवाशंकर मेहताजी द्वारा घोषित इनामको अनेक होशियार कारीगर प्राप्त करनेकी कोशिश करेंगे।

  1. दस तकुओंसे युक्त किसी ऐसे छोटे-से चरखेका आविष्कार करनेके लिए ५,००० रुपयेके पुरस्कारकी घोषणा की गई थी, जिसके कल-पुर्जे यथासम्भव भारतीय हों। चरखेका नमूना १ जनवरी, १९२० से पूर्व सत्याग्रह आश्रम पहुँच जाना चाहिए था।