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हमसे गलतियाँ हो जाती हैं

कहकर — आज जो काम किया जा रहा है, उसके पक्षमें आप प्रकाशनार्थ प्रोत्साहनके दो शब्द भेज दें।

हृदयसे आपका,

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६९३६) की फोटो-नकलसे।

१३९. हमसे गलतियाँ हो जाती हैं

जिस समय माननीय सिन्हा दण्डविमुक्ति विधेयक (इंडेम्निटी बिल) पर बोल रहे थे, वे शब्दोंके प्रयोग में गड़बड़ा गये। सर जॉर्ज लाउण्डेज़ने उन्हें टोका लेकिन परमश्रेष्ठ सभापतिने यह कहकर उनका बचाव किया कि यह जबानकी चूक है। तत्पश्चात् श्री सिन्हाने ये स्पष्ट तथा शालीन शब्द कहे: "आपके लिए यह समझना कठिन है कि इस परिषद् में विदेशी जबान बोलने में हमें क्या कठिनाई होती है। हमसे गलतियाँ हो जाती हैं।" बात बिलकुल सही है। हमसे अपनी मातृभाषा में बोलते समय भी गलतियाँ हो जाती हैं। लेकिन वे इतनी हास्यास्पद नहीं होतीं जितनी कि जब हम विदेशी जबान में बोलनेकी कोशिश करते हैं। प्रोफेसर यदुनाथ सरकारने[१] कहा है कि हमारे अंग्रेजीमें बोलने और सोचनेसे हमारे दिमागपर इतना बोझ पड़ता है कि हम उससे कभी पूरी तौरसे मुक्त ही नहीं हो पाते। इस बुराईका इलाज यही है कि हम स्वराज्यका आरम्भ अपनी विधान सभाओं में अपनी भाषाका उपयोग करके कर दें - प्रान्तीय विधान सभाओंमें प्रान्तीय भाषाओंका उपयोग हो तथा शाही परिषद् (इम्पीरियल कौंसिल) में हिन्दी और उर्दूके मिश्रण हिन्दुस्तानीका। इस सिलसिले में सबसे अच्छी शुरूआत यह होगी कि हम इस परिवर्तनको कांग्रेस में तथा अपने अन्य सम्मेलनों में अपनायें। इन सभाओंमें अंग्रेजी माध्यमका उपयोग करके हमने उस जनताका निश्चित अहित किया है, जिसे इन वार्षिक समारोहोंके कार्यक्रमके विषय में बहुत अस्पष्ट जानकारी है। इनकी कार्यवाही अंग्रेजीमें ही करनेकी धुन में हमने वास्तवमें जनताकी राजनैतिक शिक्षाके मार्ग में रोड़े अटकाए हैं। मैं सोचता हूँ कि अपने ३५ वर्षके जीवन में राष्ट्रीय कांग्रेसने अंग्रेजीके बजाय, जिसे हमारे देशवासियोंका एक अत्यन्त छोटा वर्ग ही समझता है, यदि अपनी कार्यवाही हिन्दुस्तानी में ही की होती तो क्यासे-क्या हो गया होता।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-१०-१९१९

  1. १. प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक।