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पत्र : अखबारोंको

ध्यान नहीं दे रहे हैं। जैसा पंजाबकी सरकार कर रही है, उस तरह प्रजाकी स्वतन्त्रताके साथ खिलवाड़ करनेवाली किसी भी सरकारको सम्मान पानेका कोई हक नहीं है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १५-१०-१९१९

१५३. पत्र : अखबारोंको[१]

[बम्बई]
खिलाफत दिवस [अक्तूबर १७, १९१९]

महोदय,

कल मुझपर निम्नलिखित आदेश पत्र जारी किया गया।

"भारत सुरक्षा (एकीकृत) नियम, १९१५ के नियम ३ के अन्तर्गत, सपरिषद् गवर्नर-जनरलकी पूर्व स्वीकृति से पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरने ९ अप्रैल, १९१९ को मोहनदास करमचन्द गांधीका पंजाबमें प्रवेश निषिद्ध किया था और आज्ञा दी थी कि वे बम्बई लौट जायें और बम्बई प्रेसीडेंसीकी सीमाके भीतर निवास करें;

और चूंकि अब इस आदेशकी आवश्यकता का अन्त हो गया है;

तदनुसार अब गवर्नर जनरलकी स्वीकृति से लेफ्टिनेंट गवर्नर उक्त आदेशको आज, १५ अक्तूबरसे रद करते हैं।"[२]

मैं सहज ही इसके लिए कृतज्ञ हूँ क्योंकि अब मैं पंजाबका दौरा कर सकता हूँ और वहाँ भरसक जो सेवा सम्भव हो वह कर सकता हूँ। साथ ही में यह कहे बिना भी नहीं रह सकता कि इस मुक्ति आदेशकी प्राप्तिपर मेरे भाव पूर्णत: आनन्दके नहीं थे। निष्कासन और नजरबन्दीके आदेशसे मेरा कोई अपयश न था, क्योंकि मेरी अन्तरात्मा बिलकुल स्वच्छ थी। जब मुझे आदेश-पत्र मिला तो मैंने उसे सरकारकी घोर मूर्खताका कार्य ही समझा। अब यह मुक्ति आदेश सरकारके लिए श्रेयकारी है। परन्तु यह उन मनुष्योंको तो जीवित नहीं कर सकता जिनकी प्राणहानिकी जिम्मेदारी

  1. यह अनेक प्रमुख समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ था।
  2. वास्तवमें गांधीजीपर से प्रतिबन्ध हटाने की बातपर सितम्बर में ही गम्भीरता से विचार किया जाने लगा था। भारत सरकारके ८ सितम्बरके एक तार (सं० १९१७, गृह विभाग) में कहा गया था : "स्थिति अब अपेक्षाकृत सामान्य है और उनका [गांधीजीका] तुरन्त सविनय अवज्ञा आरंभ करने का कोई इरादा नहीं लगता। शाही विधान परिषद् में गवर्नर जनरल महोदयके उद्घाटन भाषणको ध्यान में रखते हुए भारत सरकारकी राय है कि मौजूदा आदेशोंमें ढिलाई करनेका उपयुक्त अवसर इस समय है और यह कि अब उन [गांधीजी] पर प्रतिबन्ध लगाये रखनेका कोई पर्याप्त आधार नहीं है। भारत सरकारका इरादा है कि लॉर्ड इंटरके भारत आगमनके साथ ही सारे प्रतिबन्ध हटा लिये जायें।"