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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उस निषेधाज्ञापर ही है। इसके अतिरिक्त जबतक रौलट अधिनियम विधान संहितामें मौजूद है, तबतक इस मुक्ति आदेशसे मुझे कोई प्रसन्नता नहीं हो सकती। नजरबन्दीके आदेश के रूपमें मुझे सविनय अवज्ञाका एक गढ़ा गढ़ाया अस्त्र मिल गया था। मैं लोगोंको कहते सुनता हूँ कि सत्याग्रह तो रानी एनके समान ही मृत है[१] और श्री मॉण्टेग्यु कभी रौलट अधिनियमको रद नहीं करेंगे हालाँकि उन्हें यह भी विश्वास है कि यह कभी लागू नहीं किया जायेगा। जो लोग पहली बात कहते हैं वे जानते ही नहीं कि सत्याग्रह क्या है और उसकी कार्य-प्रणाली क्या है। जो दूसरी धारणा रखते हैं वे सत्याग्रहकी शक्ति से अनभिज्ञ हैं। एक सरसरी निगाह डालनेवाला व्यक्ति भी देख सकता है कि सत्याग्रह धीरे-धीरे परन्तु निश्चित रूपसे देशमें व्यापक होता जा रहा है। जहाँ-तक श्री मॉण्टेग्युकी तथाकथित घोषणाका सवाल है, मैं कहना चाहूँगा कि दक्षिण आफ्रिकाके सबसे शक्तिशाली पुरुषको भी इस बेजोड़ शक्तिके आगे झुकना पड़ा था। सन् १९०९ में जनरल स्मट्सने जनरल बोथा और यूरोपीय जनमतका समर्थन पाकर कहा था कि यद्यपि ट्रान्सवाल एशियाई अधिनियम कभी कार्यान्वित नहीं किया जायेगा किन्तु वे उसे औपचारिक रूपसे कभी रद नहीं करेंगे। परन्तु १९१४म उन्होंने उस अधिनियमको रद करके और वैधानिक जाति-प्रतिबन्धको प्रवास कानूनसे हटाकर अपनी सामर्थ्यको सिद्ध किया था।[२] मुझे रत्ती भर भी शंका नहीं है कि श्री मॉण्टेग्यु और वाइसराय महोदय उसी पुरातन शक्तिके आगे झुकेंगे और रौलट अधिनियमको अवधिको समाप्तिसे बहुत पहले ही रद कर देंगे। परन्तु वे चाहे वैसा करें या न करें, सत्याग्रहियोंका जीवन-संकल्प अन्य अनेक लक्ष्योंके साथ उस अधिनियमको रद कराना है।

आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १८-१०-१९१९

  1. 'रानी एनके समान मृत' अंग्रेजी मुहावरा, जिसका तात्पर्य है बात आई-गई हो जाना। सरकारी अधिकारियोंका अनुमान था कि सत्याग्रह आन्दोलन समाप्त हो रहा है। बम्बई सरकारने मद्रास सरकारके मुख्य मंत्रीको एक गोपीनोय पत्र में लिखा था: "सपरिषद्-गवर्नर महोदयका मत है कि गांधीजीका सत्याग्रह आन्दोलन फिलहाल मृतप्रायः माना जा सकता है। गुजराततक में जो कि गांधीका मुख्य कार्य केन्द्र है और जहाँ इस आन्दोलनका सूत्रपात हुआ था, स्थानीय संगठन छिन्न-भिन्न हो गये हैं। इसमें सन्देह है कि गांधी यदि चाहें तो उसे भी पहले जैसे जोशखरोश के साथ पुनर्जीवित कर सकते हैं। स्वयं गांधीका रुख यह है कि जहाँतक सविनय अवज्ञाका सम्बन्ध है यह आन्दोलन अनिश्चतकालके लिए स्थगित हो गया है..।"
  2. देखिए खण्ड १२।