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२१७. पंजाबकी चिट्ठी—६

शेखूपुरा
मार्गशीर्ष सुदी १५ [दिसम्बर ७, १९१९]

अन्य स्थानोंका दौरा

वजीराबादसे हम अकालगढ़ गये और वहाँसे रामनगर। ये दोनों गाँव पास-पास हैं। रामनगर अकालगढ़से चार-एक मील दूर होगा। अकालगढ़की आबादी चार हजारसे अधिक नहीं होगी। कदाचित् इससे भी कम हो। रामनगरकी तीन हजार होगी। ये दोनों नगर किसी समय खूब खुशहाल थे और इन्हें महाराजा रणजीतसिंहका अनुग्रह प्राप्त था। ये दोनों नगर इतने छोटे हैं कि उनमें कोई भी व्यक्ति दस मिनटमें चक्कर लगाकर आ सकता है। अकालगढ़में मुल्तानके प्रसिद्ध नाजिम दीवान मूलराजके पौत्र रहते हैं। दोनों गाँव इस समय तो गिरी हुई हालतमें हैं। रामनगर देखकर मेरा हृदय भर आया। रामनगरमें रणजीतसिंहके एक गवर्नरका सुन्दर महल और बगीचा है। उसमें आज सिर्फ पक्षी रहते हैं। महल धीरे-धीरे ध्वस्त होता जा रहा है श। उस महलकी एक मंजिल बिलकुल गिर गई है, बाकी हिस्सा क्रमशः ढहता जा रहा है। बगीचा वीरान-सा लगता है। ऐसे ही अन्य अनेक खंडहर भी दिखाई पड़ते हैं। रामनगरमें घी भरनेके चमड़के कुप्पे बनानेका भारी व्यवसाय होता था। एक पूरी गली तो ऐसे कुप्पे बनानेवालों की ही थी। वह मुहल्ला आज उजाड़ पड़ा हुआ है। उसमें अब कुप्पे बनानेवाला एक ही कारीगर रहता है। कुप्पोंकी जगह टीनके डिब्बोंने ले ली है, इसलिए उनका पैसा हिन्दुस्तानके बाहर चला जाता है।

इसी तरह रामनगरमें पहले अनेक बुनकर रहते थे। उनका अस्तित्व अभी पूरी तरहसे नहीं मिटा है। थोड़ी-सी खड्डियाँ आज भी चालू हैं। लेकिन उनके धन्धेका ह्रास होता जा रहा है। एक समय रामनगर अपनी जरूरतका सारा कपड़ा खुद ही तैयार कर लिया करता था और दूसरोंकी आवश्यकताकी पूर्ति भी किया करता था। उसी रामनगरके लोग आज अपने वस्त्र विदेशसे मँगवाते हैं। फिर भी रामनगर और अकाल-गढ़ आदि नगरोंमें बहादुर और सेवा करनेवाले लोग न रहते हों सो बात नहीं है। आज सबके मनमें यह खयाल पैदा हो गया है कि वस्त्र तो विदेशोंसे ही आते हैं, घी तो टीनके डिब्बों में ही भरा जाता है। [वे मानते हैं कि] यदि कोई राजनैतिक आन्दोलन चल रहा हो, तो लोगोंको फैशनके तौरपर उसमें भाग लेना चाहिए। प्लेग आदि फैलने पर लोगोंकी मदद करनी चाहिए और यदि बन पड़े तो धन एकत्रित करके एक पाठशाला खोलनी चाहिए और फिर बादमें उसके बारेमें भूल जाना चाहिए। फलस्वरूप काम करनेवाले लोग अपना समय ऐसे ही कामोंमें लगाया करते हैं।

लेकिन इससे उन्हें कोई सन्तोष नहीं होता, जब मैं सत्य, निडरता, स्वदेशी और राष्ट्रीय शिक्षाकी बातें करता हूँ तो जिन लोगोंको यह अच्छा लगता है