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पंजाबकी चिट्ठी—६

नहीं, लोगोंने उनका साथ नहीं छोड़ा और धीरे-धीरे जनताका भय दूर होता गया। इस प्रकार मनुष्यने सोचा तो कुछ था परन्तु ईश्वरने किया कुछ और ही।

मुझे तो ऐसा लग रहा है कि अधिकारी-वर्ग भी पछता रहा है; भले ही वह प्रकट रूप से पछतावा न कर रहा हो। जनरल डायर जो चाहें सो बोलें, फिर भी वे शर्मिन्दा हैं।—उन्हें कुछ-कुछ लगने लगा है कि हमने भूल की है और मेरा विश्वास है कि यदि हमारा कार्य [करनेका तरीका] स्वच्छ रहेगा तो प्रकट रूप से पश्चात्ताप करनेका समय भी आयेगा।

हाफिजाबाद में मुझे चन्द विद्यार्थियोंके सम्मुख भी बोलनेका अवसर मिला। उनसे मैंने कहा कि आप लोगोंकी शिक्षा केवल मानसिक होनेके कारण अधूरी है। मानसिक, हार्दिक और शारीरिक तीनों प्रकारकी शिक्षाएँ एक साथ मिलें तो मन, आत्मा और शरीर तीनोंका पोषण होता है। वैसी शिक्षा हिन्दुस्तानके लिए हितकर होगी। चित्तका विकास अपनी भाषाके द्वारा ही हो सकता है, हृदय और आत्माका विकास केवल धर्मसे होता है; धर्म जब शिक्षकोंके आचरणमें, उनके बोले हुए प्रत्येक शब्दमें, उनके प्रत्येक कार्य में दीख पड़े तभी विद्यार्थी उसे ग्रहण करता है। बालकोंको खेती तथा बुनाईका काम सिखाकर और उसके द्वारा उनके शरीरको सुगठित करके शारीरिक शिक्षा दी जा सकती है। इस कामकी शुरूआत, प्रत्येक शिक्षक प्रत्येक पाठशाला तथा प्रत्येक गाँवके द्वारा, जिसको भी सूझ पड़े, की जा सकती है। इसके लिए दूसरोंकी अथवा स्वराज्य-प्राप्तिकी प्रतीक्षा करनेकी जरूरत नहीं है। किसी स्थानपर बीज रोपा जाये और उसमें फल आने लगें तो इसका प्रभाव दूसरोंपर भी पड़ेगा ही। मुख्याध्यापकने अपनी पाठशाला में ऐसा प्रयोग करनेका इरादा किया है।

स्त्रियोंकी सभा

हाफिजाबादकी स्त्रियाँ पुरुषोंकी सभा में न आ सकीं, क्योंकि उनके लिए समय और स्थान दोनों ही अनुकूल न थे। इससे उन्होंने अलग सभाकी माँग की। मैंने स्वीकृति दे दी; परिणाम यह हुआ कि पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियाँ कहीं अधिक संख्या में आईं। स्त्रियोंके सम्मुख में हमेशा दो ही बातोंकी चर्चा करता हूँ। एक तो यह कि उनको जेल में पड़े अपने प्रियजनोंके लिए प्रयत्न करना चाहिए, लेकिन चिन्ता या रुदन करना त्याग देना चाहिए। दूसरी बात यह कहता हूँ कि चरखेको धर्म मानकर [अपने जीवन में] स्थान देना चाहिए। भाषणके अन्त में मेरे सम्मुख हाथकते सूतका ढेर लग गया। उनमें सूतकी बहुत सी मालाएँ भी थीं। कुछ एक स्त्रियोंने हाथके बुने कपड़े ही पहनने का व्रत लिया।

गुजराती बहनोंसे निवेदन

गुजराती बहनोंको पंजाबकी बहनोंसे बहुत कुछ सीखना है। पंजाबकी स्त्रियोंमें बहुत ज्यादा सादापन है। बहुत ही थोड़ी स्त्रियाँ आभूषण पहने हुए दिखाई दे रही हैं। थोड़ी ही स्त्रियोंके वस्त्रोंमें गोटा लगा हुआ होता है और सब स्त्रियाँ सूत कातना जानती है। ये सबकी सब गरीब नहीं कही जा सकतीं। गुजराती बहनोंके पास जितना