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२२१. पत्र : मगनलाल गांधीको

लाहौर
बुधवार [दिसम्बर १०, १९१९][१]

चि०॰ मगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला।

छोटालाल आजकल चलने-फिरनेमें असमर्थ है। उसकी जाँघमें फोड़ा हो गया था। शुरू में तो वह फुंसी ही थी। अब उसमें चीरा लगा दिया गया है। एक-दो दिनमें ठीक हो जायेगा। मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही है।

हरिलाल यहाँ आया हुआ है। कल जायेगा। व्यापारके सम्बन्धमें ही मिलने आया था।

आश्रमवासियोंका स्वास्थ्य अभी ऐसा नहीं हो पाया है जिससे मुझे सन्तोष हो सके। इससे मेरे मनमें चिन्ता उत्पन्न होती है। अपने शरीरकी में पूरी सँभाल रखता हूँ; इस बारेमें मुझे जरा भी शक नहीं है। मेरी धारणा है कि यदि मैं विशेष संयमका पालन करूँ तो और भी अधिक अच्छा हो सकता हूँ। में दोनों जून खाता हूँ क्योंकि ऐसा करके ही शरीरको स्वस्थ रख सकता हूँ। अपने शरीरके बारेमें मुझे ऐसा अनुभव हुआ है कि जिन दिनों काम अधिक रहता है या यात्रा करनी पड़ती है उन दिनों कम खानेसे शरीरको कोई नुकसान नहीं पहुँचता। जो कार्य अनायास ही हमारे जिम्मे आ जाता है उसे हम छोड़ नहीं सकते। हमें अपनी जानकी जोखिम उठाकर भी जलते हुए व्यक्तिकी मददके लिए दौड़ पड़ना चाहिए। यदि कोई साँप बच्चेको काटनेको दौड़े तो हमें अपने शरीरकी आहुति देकर भी उसे बचाना चाहिए। इस तरह कसौटी पर कसी देह ही काम आती है। आश्रमवासियोंका कर्तव्य है कि वे अपने शरीरको स्वस्थ रखें। मैंने तो अपने स्वास्थ्यको बिगड़ने नहीं दिया है। अब इस शरीरसे सावधानी से काम ले रहा हूँ। इससे काम लेते हुए यथासंभव स्वास्थ्यको बनाये रखना ही ठीक है। यदि में अब भी और अधिक नियमोंका पालन करते हुए संयमसे काम लूं और समयकी बचत करूँ तो तबीयत और भी अच्छी हो सकती है। ऐसा करने में बहुत हिम्मतकी जरूरत है। [मुझे] लोगोंसे कठोरतापूर्वक कहना पड़ेगा कि अब बस करो। ऐसे हमेशा नहीं चल सकता। इतनी. . .[२]

मनमें आई हुई सब आवश्यकताओंको पूरा करना में आवश्यक और अनुचित समझता हूँ। विशेष विचार तो तुम स्वयं ही कर लोगे।

  1. हरिलालके उल्लेखसे पता चलता है कि गांधीजीने यह पत्र रविवार, ७ दिसम्बरके बाद बुधवारको लिखा था। देखिए "पत्र : मगनलाल गांधीको", ७-१२-१९१९।
  2. इसके बादका एक पृष्ठ उपलब्ध नहीं है।