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विदेशों में भारतीय


और इस अवसरपर जैसी परीक्षा राष्ट्रीयताकी हो रही है ठीक वैसी ही साम्राज्यवादी भावनाकी भी हो रही है। यदि साम्राज्यवादका कोई अर्थ है तो वह यही है कि उसमें अपने उन सभी हितोंकी रक्षा करनेकी सामर्थ्य है जो साम्राज्यके अंग हैं। इस कसौटीके अनुसार वे भारतीय जो विदेशोंमें जाकर बस गये हैं हमसे और शाही सरकारसे दुहरी सुरक्षाकी माँग करते हैं। किन्तु अभी तो ऐसा लगता है कि दोनों ही उनके इस विश्वासको सार्थक करनेमें असफल रहे हैं।

यद्यपि हम उम्मीद कर सकते हैं कि साल खत्म होते-होते अन्तिम घोषणा कर दी जायेगी कि गिरमिटिया प्रथा हमेशाके लिए समाप्त हो गई है, किन्तु यह हमारे या शाही सरकार के लिए श्रेयकी बात नहीं है कि यह भ्रष्ट और अनैतिक प्रथा इतने सालोंतक चलती रही, और यदि हमें अपने उद्देश्यमें सफलता मिल जाती है तो इसका श्रेय मुख्यतः दो अंग्रेज महानुभावों, श्री एन्ड्रयूज और श्री पियर्सनके एक मनसे किये गये प्रयासको है। लेकिन अभी और भी बहुत कुछ करना बाकी है। फीजी सरकारने इन अभागे मजदूरोंकी खुशहालीके प्रति इतनी लापरवाही बरती है कि उन्हें शिक्षाकी भी उचित सहूलियत नहीं मिल पाई। वे ऐसे लोगों की तलाशमें हैं जो उन्हें शिक्षा दें और उनका नेतृत्व करें। सच कहें तो भारतमें ऐसे आदमी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं जो सेवाके रूपमें इस कार्यको करनेके लिए तैयार हों।

पूर्वी आफ्रिकाकी समस्या अधिकाधिक गम्भीर हो चली है जैसा कि नैरोबीसे श्री एन्ड्रयूज द्वारा श्री गांधीको भेजे गये निम्नलिखित तारसे प्रकट होता है :

पूर्वी आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थिति अब बहुत नाजुक और खतरनाक हो गई है क्योंकि यूरोपीय संघों द्वारा संगठित प्रयत्न हो रहा है कि भविष्यमें पूर्वी अफ्रिकाका दरवाजा भारतीयोंके लिए बिलकुल बन्द कर दिया जाये और भारतीयोंसे मताधिकार छीन लिया जाये। मुख्य कारण यह बताया जाता है कि भारतीयोंके सम्पर्कमें आकर आफ्रिकी लोगोंका चारित्रिक पतन होता है जबकि पश्चिमी ईसाई सभ्यताके सम्पर्कसे उनका उत्थान होता है। हाल ही में छपी सरकारी आर्थिक आयोगकी रिपोर्ट में यही रवैया अख्तियार किया गया है और भारतीयोंके चारित्रिक पतनका उल्लेख करते हुए दक्षिणी आफ्रिकी [भारतीयों] को अलग रखनेकी नीतिका समर्थन किया गया है। स्थानीय भारतीय कांग्रेसकी एक सभामें, जो अपने प्रभाव और संख्याकी दृष्टिसे उल्लेखनीय थी, इसपर तीव्र रोष प्रकट किया गया है। मैंने भारतीयोंकी प्रार्थना-पर जनवरीतक यहाँ रहनेका निश्चय किया है। मेरे सुझावपर स्थानीय कांग्रेस समितिने जर्मन पूर्वी आफ्रिकामें विशेष अधिकार दिये जानेकी अपनी माँगको छोड़नेका निश्चय किया है, लेकिन यह माँग की है कि उनके वर्तमान सब अधिकार ज्यों-त्यों बरकरार रखे जायें। यह तार कांग्रेसके सामने और समाचारपत्रों में प्रस्तुत करते हुए स्थितिको स्पष्ट कीजिए।

इस तारसे पता चलता है कि भारतीयोंके विरुद्ध आन्दोलन कितना सिद्धान्तहीन है। जो लोग ईसाई सभ्यताका ढिंढोरा पीटते हैं वे ईसाइयतकी सीख से अनभिज्ञ हैं और कतई नहीं जानते कि वहाँ बसनेवाले भारतीयोंने किस प्रकार आफ्रिका-