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२२८. पूर्वी आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्थिति[१]'

लाहौर,
दिसम्बर १६, १९१९

स्थितिका वर्णन करते हुए श्री गांधीने कहा :

पूर्वी आफ्रिकामें भारतीय विरोधी आन्दोलन नितान्त सिद्धान्तहीन है। दक्षिण आफ्रिकामें इसी किस्मका जो आन्दोलन हुआ था वह देखन में कुछ युक्ति-युक्त प्रतीत होता था; लेकिन इसमें तो वह बात भी नहीं है। दक्षिण आफ्रिकाका यूरोपीय उपनिवेशी दक्षिणी अफ्रिकाको अपना घर मानता है और यह दावा करता है कि वहाँ आकर बसनेवालोंमें वह अग्रणी है। लेकिन पूर्वी अफ्रिकाका यूरोपीय इस तरहका कोई दावा नहीं कर सकता, उसका तो वहाँ एक ही स्वार्थ है—शोषण। वहाँ बसनेवालोंमें अग्रणी अगर कोई है तो भारतीय लोग ही हैं जो वहाँ तब पहुँच चुके थे जब किसी भी यूरोपीयके पैर वहाँ नहीं पड़े थे। पूर्वी आफ्रिकाके ऊँचे मैदानोंको जबतक भारतीयोंने अपने श्रमसे विकसित नहीं कर दिया तबतक यूरोपीयोंके स्वार्थ पनपनेकी वहाँ कोई गुंजाइश नहीं थी। चूँकि नैरोबीका जलवायु सुन्दर है और शिकार खेलनेकी वहाँ काफी गुंजाइश है अतः भारतीय व्यापारी और भारतीय भूस्वामीको यूरोपीय सहन नहीं कर सकते। पूर्वी आफ्रिकामें बसने और वहाँके राजनीतिक जीवनको प्रभावित करने के अपने अधिकारोंमें किसी तरहकी कमी हम बरदाश्त नहीं कर सकते। हमें आशा है कि भारत सरकार और शाही सरकार पूर्वी आफ्रिकामें भारतीयोंके अधिकारोंकी पूरी तरह रक्षा करेगी और भारतकी समस्त सार्वजनिक संस्थाएँ इस प्रश्नपर अपनी भावनाएँ साफ-साफ शब्दोंमें व्यक्त करेंगी।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-१२-१९१९
 

२२९. विदेशोंमें भारतीय

दक्षिणी आफ्रिका, पूर्वी आफ्रिका और फीजी आज हमारे लिए समस्याएँ प्रस्तुत करके उनका समाधान माँग रहे हैं और हमारी राष्ट्रीय क्षमताको चुनौती दे रहे हैं। जबतक अपने छोटेसे-छोटे देशवासीके लिए भी हमारे मनमें वैसा ही दर्द नहीं होगा जैसा कि अपने लिए है तबतक यह नहीं कहा जा सकता कि हमारे अन्दर राष्ट्रीय चेतना है। हमारे वे देशवासी जो संसारके विभिन्न भागोंमें जाकर बस गये हैं नेतृत्व, सहायता और रक्षाके लिए हमारी ओर आँखें लगाये हुए हैं।

  1. पूर्वी आफ्रिकामें भारतीयोंको स्थितिके सम्बन्धमें सी० एफ० एण्ड्यूज द्वारा नैरोबीसे प्रेषित तार (अगले शीर्षकमें उद्धृत) पर गांधीजीकी टिप्पणी। यह कई समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुई थी।