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उपद्रव जाँच समितिके सामने गवाही


इसका दूसरा हिस्सा समझ पाना तो बहुत आसान है अर्थात् यह कि उन्हें किसी कानूनका या उस कानूनका सरकार द्वारा प्रयोग करनेका विरोध करना है। यह चीज तो साधारण बुद्धिके लोग बहुत आसानीसे समझ लेते हैं?

मेरा खयाल है आप ठीक ही कह रहे हों; लेकिन मैं नहीं मानता, मुझे लोगोंको यह समझाना इतना आसान जान पड़ा हो कि अन्यायपूर्ण कानूनोंका विरोध करना बहुत कठिन है। सच तो यह है कि उन्हें यह बात समझाने में मुझे काफी शक्ति और श्रम लगाना पड़ा है।

मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर आप लोगोंसे कहते हैं कि रौलट कानून या कोई अन्य कानून अन्यायपूर्ण है और इसलिए हमें उसका विरोध करना ही चाहिए तो यह एक ऐसी बात होगी जिसे असाधारण बुद्धिके लोग आसानीसे ग्रहण कर लेंगे और समझ जायेंगे?

जी हाँ, बेशक।

और अगर इसके साथ-साथ आप उनसे यह भी कहें कि वे कानूनोंका विरोध तो करें लेकिन हिंसासे हाथ खींचे रहें तो अभी इस बातको ग्रहण करने और समझने की उनमें जितनी शक्ति है उसे देखते तो यह दूसरा पक्ष बहुत कठिन होगा?

निःसन्देह।

तो आप अहमदाबाद १२ तारीखको पहुँचे?

जी नहीं, १३ को।

आपने अध्यक्ष महोदयको यह बताया कि आपके इस आशयके जिस वक्तव्य देनेकी खबर है कि इस कार्रवाईकी योजना पढ़े-लिखे लोगोंने तैयार की थी उसके पीछे आपका मतलब क्या था। आपने हमसे कहा है कि उसके पीछे आपका मतलब यह था कि कोई आम साजिश नहीं थी, लेकिन इसकी योजना १० तारीखको तैयार की गई और जिन लोगोंने इसकी योजना तैयार की, वे पढ़ और लिख सकते थे। तो आपका मतलब यह है कि इसमें ज्यादा पढ़े-लिखे लोगोंका हाथ नहीं था?

जी हाँ, ऐसा ही है।

आप कहते हैं, इस कार्रवाईकी किसीने पहलेसे योजना तैयार कर ली थी। अपने इस कथन के समर्थनमें क्या आपके पास कोई प्रमाण है?

जी हाँ, उस वक्तव्यके समर्थनमें मेरे पास प्रमाण हैं।

मेरा खयाल है, उसे आप न तो अधिकारियोंके सामने रखना चाहते हैं और न इस समिति के सामने?

मैं सूचना देनेवाले लोगोंके नाम बताने को तैयार नहीं हूँ।

मैं उनके नाम चाहता भी नहीं हूँ। लेकिन उन्होंने आपको कुछ तथ्य, कुछ सामग्री तो दी ही होगी, जिसके आधारपर आप इस निष्कर्षपर पहुँचे कि इसकी योजना