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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आप उस समय बम्बई जा रहे थे?

जी हाँ, में बम्बई वापस लौट रहा था।

आप बम्बई कब पहुँचे?

११ को।

९ तारीखको आपको पलवल में गिरफ्तार किया गया और उसी दिन आपने एक सन्देश भेजा?

गिरफ्तार होनेसे पहले ही मैंने यह सन्देश[१] बोलकर लिखवा दिया था।

क्या आपको यह मालूम है कि १० तारीखको अहमदाबादमें एक सभा आयोजित की गई जिसमें आपका सन्देश पढ़ा गया?

जी हाँ, मालूम है।

उस सन्देशमें आपने लोगोंसे हिंसा न करनेका अनुरोध किया था?

जी हाँ।

और मेरा खयाल है वह सन्देश सभामें उपस्थित लोगोंको समझाया भी गया था?

जी हाँ।

यह अहमदाबादकी एक बहुत ही जबरदस्त सभा थी?

हाँ, सुना तो ऐसा ही है।

लेकिन लोगोंको आपका सन्देश, जिसमें आपने उनसे हिंसा न करनेका अनुरोध किया था, सुनानेके बावजूद ११ तारीखको भीड़का आवेग हिंसाके रूपमें फूट पड़ा?

जी हाँ।

श्री गांधी तो क्या इससे यह नहीं प्रकट होता कि सर्वसाधारणको जैसी स्थिति है, उस स्थितिमें उसे यह अहिंसा और स्वयं कष्ट सहनेका सिद्धान्त समझा पाना बहुत कठिन है?

हाँ, इसमें जो कठिनाई है उसे तो में भी स्वीकार करता हूँ।

उस सिद्धान्त अर्थात् अहिंसा तथा स्वयं कष्ट सहनेके सिद्धान्तपर आचरण करना भी उनके लिए बहुत कठिन है?

हिंसात्मक तरीकोंके आदी हो जानेपर लोगोंके लिए आत्मसंयम बरतनेमें कठिनाई होती ही है।

तो अपनी वर्तमान परिस्थितियों में उनके लिए आत्मसंयम द्वारा हिंसाकी वर्जना करना बहुत कठिन है?

निश्चय ही।

  1. यह गांधीजीके लिखित बधानके साथ संलग्न किया गया था। देखिए खण्ड १५, पृष्ठ २१४–१६।