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२८०. पत्र : एस्थर फैरिंगको

रविवार [जनवरी २५] १९२०[१]

रानी बिटिया,

नरहरिने मुझे बताया है कि तुम आजकल इमाम साहबके साथ रह रही हो। मुझे खुशी है कि तुम वहाँ निश्चय ही किसी भी और जगहकी अपेक्षा अधिक घर-जैसा महसूस करोगी, क्योंकि कमसे कम तुम्हारे पास कोई ऐसा तो रहेगा जो बराबर तुमसे अंग्रेजीमें बात करेगा। और फिर तुम अपना संतुलित स्नेह फातिमाको दे सकती हो और उसका शुभ परिणाम भी तत्काल ही होगा।

यदि तुमने अपना स्वास्थ्य और मनकी शांति गँवा दी तो मुझे हार्दिक दुःख होगा। 'बुराईका प्रतिरोध न करो' इस कथनका जो अर्थ ऊपरसे दिखाई देता है, उससे कहीं अधिक गहरा है। उदाहरणके लिए बामें जो बुराई है उसका प्रतिरोध नहीं करना चाहिए; तुम्हें या फर्ज करो मुझको इसके बारेमें खीझना या व्यग्र नहीं होना चाहिए और अपने आपसे यह नहीं कहना चाहिए कि 'यह स्त्री सत्यको क्यों नहीं देखती, या मेरे स्नेहका प्रतिदान क्यों नहीं देती।' जिस प्रकार एक तेंदुआ अपने [खालके] धब्बे नहीं बदल सकता उसी तरह वह अपने स्वभावके प्रतिकूल नहीं जा सकती। यदि तुम या मैं प्यार करते हैं, तो हम अपने स्वभावके अनुसार कार्य करते हैं। यदि वह बदलेमें स्नेह नहीं करती तो वह अपने स्वभावके अनुसार आचरण करती है। और यदि हम इसकी चिन्ता करते हैं तो हम 'बुराईका प्रतिरोध' करते हैं। क्या तुम मुझसे सहमत हो? मुझे लगता है कि इस आदेशका यही गहरा अर्थ है और इसलिए मैं चाहूँगा कि प्रत्येकके साथ व्यवहार में तुम अपनी समवृत्ति बनाये रखो। दूसरी बात यह कि तुम्हें अपने शारीरिक आरामके लिए जिस किसी चीजकी जरूरत हो उससे शरीरको वंचित न करो। यदि और किसीसे नहीं तो मुझसे कहो।

चूँकि मैं तुम्हारे बारेमें चिन्तित रहता हूँ, मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे रोज पत्र लिखो।

स्नेह और मंगलकामनाओं सहित,

तुम्हारा,
बापू

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित हस्तलिखित मूल अंग्रेजी मसविदेकी फोटो-नकल तथा माई डियर चाइल्डसे।

  1. पत्रकी पद तारीख महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरोमें दी गई है।