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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सुधारों आदिके विषयमें जो अर्ध सत्य है उनपर टीका करना में अनुचित समझता हूँ। जो क्रोधी स्वभावके हैं उन्हें में उपर्युक्त पत्रपर मनन करने की सलाह देता हूँ और चाहता हूँ कि वे लोग भी ऐसे भ्रमोंका शिकार न बनें। मेरे ऊपर भले ही उपर्युक्त आक्षेप किये जायें। खेड़ा जिला आदिके सम्बन्धमें की गई सेवाओंको भले ही मान्यता प्रदान न की जाये। इन सबके विषय में मतभेद हो सकते हैं लेकिन हमें क्रोधके बहाव में बह नहीं जाना चाहिए। जिस पुरुष के कार्योंको एक बार हमने भली-भाँति सोच-समझकर अच्छा माना था उसी पुरुषके दूसरे कार्य बुरे लगनेपर हमारा कर्तव्य है कि हम उसके उन सभी कार्योंको बुरा न मानें जिन्हें कभी हमने अच्छा माना था।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २५-१-१९२०

२७९. पत्र : ठाकोरको

लाहौर
जनवरी २५, १९२०

प्रिय श्री ठाकोर,

आपके इग्लैंडके कामके बारेमें में इससे अधिक और कुछ नहीं कह सकता कि आप जो भी जानकारी दें, बिलकुल सही होनी चाहिए और जो भी माँग करें वह मर्यादित हो, लेकिन साथ ही माँगनेके ढंगमें दृढ़ता होनी चाहिए। दोनोंमें से किसी भी मामले में असंयम बरतनेसे आपका पक्ष कमजोर होगा। मैं आपको कोई कागज भेजने में असमर्थ हूँ, क्योंकि मेरे पास यहाँ कुछ नहीं है। में यह मान लेता हूँ कि आप श्री पोलकसे मिलकर उनका परार्मश-निर्देश प्राप्त करेंगे। मैं आपकी पूर्ण सफलताकी कामना करता हूँ।

हृदयसे आपका,

पेंसिल से लिखे अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७०२७ (ई) से।