पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२९
पत्र : आसफ अलीको

और हमारी [हिन्दुओंकी] ओरसे मुसलमानोंमें किसी भी तरह के प्रचारको टालना चाहिए।

मुझे इस बातकी भी खुशी है कि आपने नैतिक प्रश्नको भी उठाया है और उसपर विशुद्ध शास्त्र सम्मत धार्मिक आधारपर नहीं बल्कि उदार और मानवीयताके आधारपर विचार व्यक्त किये हैं। तथापि में शास्त्र सम्मत धार्मिक आधारपर कहूँगा कि जब दो महान् जातियाँ साथ-साथ रहती हैं उस समय एक जातिकी धार्मिक भावनाकी यह माँग होती है कि वह दूसरी जातिकी धार्मिक प्रथाओंका बशर्तें कि वे सर्वसामान्य दृष्टिसे अनैतिक न हों, सच्चे मनसे खयाल रखें। उदाहरण के लिए, गैर-मुसलमान मक्का जायें, इसमें मुझे कुछ गलत नहीं लगता। लेकिन गैर-मुसलमानोंको आप मक्कामें प्रवेश करनेसे रोकें तो इसमें अनैतिक कुछ नहीं है। और चूँकि निषेधकी यह भावना पिछले १,३०० वर्षोंसे बराबर चली आ रही हैं, अतः में उसका समर्थन करता हूँ।

ऐसा ही मुसलमानोंके लिए गो-वधके मामलेमें भी हो सकता है।

जहाँतक उदार मानवीय आधारका सवाल है, चूँकि आपके विचार मेरे विचारसे बहुत भिन्न हैं, अतः हमें शायद एक-दूसरेसे असहमत ही रहना होगा। मैं मानता हूँ कि ईश्वरने निम्नवर्गके प्राणियोंकी रचना इसलिए नहीं की है कि मनुष्य उनका अपनी इच्छानुसार उपयोग करे। मनुष्य भोगके द्वारा नहीं बल्कि संयम द्वारा ही श्रेष्ठतम स्थितिको प्राप्त होता है। यदि में वनस्पतियोंको खाकर स्वस्थ रहते हुए जी सकता हूँ तो मुझे किसी प्राणीकी हत्याका कोई अधिकार नहीं है। कुछ प्राणियोंकी हत्या करना मुझे आवश्यक प्रतीत होता है, केवल इस कारण सभी प्रकारके प्राणियोंकी हत्या करनेका मुझे कोई अधिकार नहीं है। अतः यदि में बकरी, मछली और मुर्गी (जो कोई भी ईमानदारीसे काफी मानेगा) खाकर भली भाँति जी सकता हूँ, तो मेरे लिए भोजनके हेतु गायकी हत्या करना पाप है। और ऐसा ही कोई तर्क था जिसके कारण प्राचीन कालके ऋषियोंने गायको पवित्र माना, विशेष रूपसे तब जब उन्होंने देखा कि गाय राष्ट्रीय जीवनमें सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक पूँजी है। और जबतक मेरी पूजा गायको उसके स्रष्टाके साथ बराबरीका दर्जा न देती हो तबतक गाय जैसे उपयोगी जानवरकी पूजा करना मुझे गलत, अनैतिक या पाप नहीं जान पड़ता। मैं इस विचारका (जिसपर इस्लाममें बहुत बल दिया गया है) बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ कि विशेष पूजा केवल उसी की होनी चाहिए जो हम सबका रचयिता। किन्तु में गऊकी पूजा और गो-वध, इन दो प्रश्नोंको मिलाना नहीं चाहता। यदि आप यह बात मानते हैं कि मनुष्य जितना ही संयम रखता है, मनुष्यके नाते वह उतना ही श्रेष्ठ होता है, तो आपको यह माननेमें कोई कठिनाई नहीं होगी कि नैतिक आधारपर गो-वधका समर्थन नहीं किया जा सकता।

मैं आपसे सहमत हूँ कि जहाँतक गो-वधके आर्थिक पहलूकी बात है, यूरोपीयोंके लिए होनेवाला गो-वध सबसे पहले आता है। जबतक सार्वजनिक बूचड़खानोंमें प्रतिदिन होनेवाली गो-हत्या के प्रश्नपर हिन्दू गूँगे बने रहते हैं तबतक मेरी राय में बकरीदके

१६–३४