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४२. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

लैबर्नम रोड, गामदेवी

बम्बई

अगस्त २२, १९१९

प्रिय चार्ली,

सुन्दरमने मुझे कुमारी फैरिंगके बारेमें बड़ा ही चिन्ताजनक समाचार सुनाया है। मैंने उससे खास तौरपर इसीलिए वहाँ जाकर कुमारी फैरिंगसे मिलनेको कहा था। उसने लौटकर मुझे यह बतलाया है कि फैरिंग अब 'डैनिश मिशन' में काम नहीं करती और आशंका है कि उसे कहीं भारत न छोड़ना पड़े। वह इस सम्भावनाके कारण बहुत परेशान है। यदि उसे भारत छोड़ना पड़ा, तो उसकी तो जैसे मौत ही हो जायेगी। मैंने लॉर्ड विलिंग्डनको जो पत्र लिखा है उसकी प्रति भेज रहा हूँ। मुझे इसकी बड़ी चिन्ता है। अच्छा हो कि तुम तुरन्त ही मद्रास चले जाओ और उसका देशनिकाला रोकने के लिए जो भी बन सके करो। अहिंसा के सिद्धान्तकी अकाट्यतापर मेरा विश्वास दिन-दिन अधिक जमता जा रहा है। पशु-बल जिसके पास जितना अधिक होता है वह उतना ही अधिक कायर बन जाता है। जरा कल्पना तो करो, संसारके एक सबसे अधिक निर्दोष व्यक्तिपर नजर रखनेके लिए गुप्तचर विभागकी पूरीकी-पूरी घृणित मशीनका लगा दिया जाना कितनी विचित्र बात है। निर्दोष व्यक्तियोंको शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचाकर बन्दूककी गोली से अपनेको बचानेकी अपेक्षा मैं स्वयं तो उन गोलियोंसे छलनी बन जाना कहीं ज्यादा पसन्द करूँगा। आज हमारी सरकार कोई भी ज्यादती करनेसे नहीं हिचकती। भौतिक बलकी निःसारता इतनी स्पष्ट दिखाई पड़ती है कि उसे समझनेके लिए किसीका दार्शनिक होना जरूरी नहीं। परन्तु हो सकता है कि तुम मेरे निष्कर्षो या अनुमानोंसे सहमत न हो। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी इस बात से अवश्य सहमत हो जाओ कि कुमारी फैरिंगको किसी भी अनिष्टसे बचानेके लिए भरसक प्रयत्न करना हमारे लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि मेरे लिए पूरे जीवनकी बाजी लगाकर रौलट अधिनियमका विरोध करना और तुम्हारे लिए शान्तिनिकेतनमें रहना।

तुम्हारा,

मो० क० गांधी

संलग्न : १

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६८२२) की फोटो नकलसे।