४३. पत्र : एस्थर फैरिंगको
लैबर्नम रोड बम्बई
अगस्त २४, १९१९
तुम्हारे सम्बन्धमें सुन्दरम् के पत्रने मुझे बहुत उदास कर दिया है। तुम्हारे दुःखमें मेरी हार्दिक समवेदना है। लेकिन मैं जानता हूँ कि जब हम अतिशय दुर्बल हो गये हों उस समय ईश्वरपर भरोसा रखें तो वह हमें किसी-न-किसी प्रकार शक्ति प्रदान कर देता है। इसीलिए अपने हृदयके अन्तरतममें मुझे लगता है कि तुमपर कैसी भी क्यों न बीते, अन्तमें तुम्हारा कल्याण ही होगा। फिर भी मैं गवर्नरको पत्र लिखे बिना नहीं रह सका।[१] उस पत्रकी एक प्रति संलग्न है। यदि तुम्हें कोई काम न हो, तो तुरन्त आश्रम चली जाओ। मैं श्री बिटमैनको पत्र लिखना चाहता हूँ, लेकिन पहले मैं इस पत्रके उत्तरकी प्रतीक्षा करूँगा। बाकी बातें गवर्नरके नाम मेरे पत्रसे तुम्हें ज्ञात हो जायेंगी। यदि लगे कि उसमें वस्तुस्थितिका, सही उल्लेख नहीं है तो मुझे सूचित करना। यदि तुम अपनी आर्थिक आवश्यकताएँ[२] मुझे नहीं बताओगी तो तुम रानी बिटिया नहीं कहलाओगी।
सस्नेह,
तुम्हारा,
बापू
- [ अंग्रेजीसे ]
माई डियर चाइल्ड
४४. पत्र : एन० पी० कॉवीको
लैबर्नम रोड, गामदेवी बम्बई
अगस्त २५, १९१९
जान पड़ता है, परमश्रेष्ठसे मुलाकात का मौका मुझे शायद कुछ दिनोंतक नहीं मिल सकेगा।[३] फिर भी मैं स्वदेशी के बारेमें परमश्रेष्ठकी सम्मति यथाशीघ्र पानेके लिए