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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रही है, इन अपील करनेवाले लोगोंको रिहा करने में संकोच नहीं करेगी और इस प्रकार समस्त भारतकी सद्भावना अजित करेगी। जो उदारता विजयकी घड़ी में दिखाई जाती है, वही सबसे अधिक प्रभावकारी सिद्ध होती है। और लोगोंकी रायमें अपीलोंका खारिज किया जाना सरकारकी विजय ही है।

मैं अपने पंजाबके मित्रोंसे सादर अनुरोध करता हूँ कि वे हताश न हों। हमें शान्त मनसे अपने-आपको बुरीसे-बुरी स्थितिके लिए तैयार कर लेना चाहिए। यदि ये सजाएँ कानून-सम्मत है, यदि ये दण्डित व्यक्ति हत्या करने या हत्या करनेके लिए दूसरोंको उकसानेके दोषी है तो वे सजासे क्यों बचें? यदि इन्होंने ये अपराध न किये हों--और हमारा खयाल है कि कमसे-कम इनमें से अधिकांशने तो ये अपराध नहीं ही किये हैं--तो उन सब लोगोंकी किस्मतमें जो लिखा है हम उससे बचनेकी चेष्टा क्यों करें जो एक सीढ़ी और ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहे हैं? यदि हमें ऊँचा उठना है तो हम इस बलिदानसे क्यों डरें? बलिदान किये बिना कभी कोई राष्ट्र ऊपर नहीं उठा है और बलिदान तो निरपराधों द्वारा सही गई यातनाओंको ही कहा जायेगा, अपराधियों द्वारा प्राप्त दंडोंको नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-३-१९२०

५१. पत्र: एस्थर फैरिंगको

बम्बई
बुधवार [३ मार्च,][१]१९२०

रानी बिटिया,

मुकदमा रहा है और चूँकि मुझे कुछ मिनटोंका काश मिला है, तुम्हें चन्द पंक्तियाँ लिख भेजना चाहता हूँ।

तुम मेरे ध्यानमें निरन्तर रहती हो। कभी-कभी तो जब तुम्हारे साथ हुई अपनी बातोंको ओर खयाल जाता है और जब यह सोचता हूँ कि कुछ अवसरोंपर, जब मैंने तुम्हारे प्रति नरम होना चाहा था, में शायद कठोर प्रतीत हुआ होऊँगा तब में बेचैन भी हो जाता हूँ। हमारे शब्द हमारे इरादेके अनुसार अच्छे या बुरे नहीं माने जा सकते, बल्कि उनके बुरे या अच्छे होने की कसौटी श्रोतापर पड़नेवाला प्रभाव है। क्या तुम सुखी और प्रफुल्लित हो? तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है?

मैं चाहता हूँ कि तुम श्री बी० का सन्दूक उन्हें वापस कर दो। यदि तुम्हें दूसरा चाहिए तो तुम मद्रासमें खरीद लेना। तुम मुझे अपना कार्यक्रम तो सूचित करोगी ही।

  1. पत्रमें उल्लिखित अदालतको मानहानिके मुकदमेको सुनवाई ३ मार्चको बम्बई में हुई थी। देखिए "क्या यह न्यायालयकी मानहानि थी?", १०-३-१९२०।