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भाषण: खिलाफत सभा, बम्बईमें


मुकदमा समाप्त हो गया है, परन्तु फैसला रोक लिया गया है। मैंने तुम्हें-एक तार[१] भेजा है।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड

५२. भाषण: खिलाफत सभा, बम्बईमें[२]

३ मार्च, १९२०

मुझसे खड़े होकर बोला नहीं जाता। इस प्रश्नपर मैं बहुत बार बोला हूँ। मेरा अपना विश्वास है कि हमारी इच्छाके विरुद्ध हमारे साथ कुछ भी नहीं किया जा सकता। हमारी मांगें पूरी होनी चाहिए। कलकत्ताकी खिलाफत परिषद्मे[३] पास किया गया प्रस्ताव आज मेरी निगाहमें आया और उसे पढ़कर मुझे आनन्दका अनुभव हुआ। यहाँ [उक्त सभामें] मौलाना साहबने[४] हमारे कर्त्तव्यको रूप-रेखा अंकित कर दी है। उन्होंने सम्राट्को जो कुछ कहना है सो ठोक-बजाकर कहा। आज हमपर जो अवसर आ पड़ा है, कोई कारण नहीं कि वैसा ही अवसर कल मेरे हिन्दू भाइयोंपर क्यों नहीं आ पड़ेगा? मैंने अपनी यह गर्दन खुदाके नामपर संसारके तथा आपके सामने पेश कर दी है। (वाह-वाह) इसके अतिरिक्त मैं आपको और क्या दूँ? यदि इस प्रश्नका कोई सन्तोषजनक हल न निकले और हमारे मुसलमान भाई विधान-परिषदोंसे त्यागपत्र दे दें तो मैं आपको कह सकता हूँ कि हमारे सब हिन्दू भाई भी उनका अनुकरण किये बिना न रह सकेंगे। (तालियोंकी गड़गड़ाहट) कलकत्ता-परिषद्ने बहिष्कारका[५] जो प्रस्ताव पास किया है उससे मुझे कोई सहानुभूति नहीं है। हमें बहिष्कारकी बातसे दूर रहना चाहिए। यदि हमने "जान" देने की तैयारीकी हो तो फिर बहिष्कारकी क्या बिसात? यह एक अत्यन्त पवित्र कार्य है। जिस चीजके लिए कीमत देनी चाहिए? हम उसीके लिये देंगे। हमें समर्थ बनाने के लिये कैंटरबरी तथा यॉर्कके आर्चबिशप क्या कर सकते हैं? हमें हिन्दू भाइयोंकी पूर्ण सहानुभूति प्राप्त है। आजकल में थोड़ा-थोड़ा "कुरान" पढ़ने लगा हूँ। (वाह-वाह) इससे में आपके अधिकसे-अधिक निकट सम्पर्क में आता जाता हूँ। हमें द्वेषसे किसीपर भी विजय प्राप्त नहीं करनी है। तलवारसे

  1. यह उपलब्ध नहीं है।
  2. यह सभा खिलाफत समितिको ओरसे बुलाई गई थी; मियाँ मुहम्मद हाजी जान मुहम्मद छोटानो इसके अध्यक्ष थे।
  3. २९ फरवरी, १९२० को।
  4. मौलाना अबुल कलाम आजाद, जिन्होंने सभाकी अध्यक्षता की थी।
  5. ब्रिटिश मालका।