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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरोंका सिर काटने के बजाय अपना सिर देने के लिए तैयार हो जाओ। (निस्सन्देह-निस्सन्देह) हमारे सब प्रतिनिधियोंको यह बात कहने के लिए तैयार रहना चाहिए कि अगर इस प्रश्नका सन्तोषकारक हल न निकला तो हम देशके प्रशासन-कार्य में तनिक भी मदद करनेवाले नहीं है।

[गुजरातीसे]
गुजराती, ७-३-१९२०

५३. भाषण: बम्बईमें[१]

४ मार्च, १९२०

इस सभाकी स्थापना करनेके लिए श्री गांधीने आन्दोलनके संगठनकर्ताओंको बधाई दी और आशा व्यक्त की कि जो काम सभाने हाथमें लिया है उसमें उसे सफलता मिलेगी। उन्होंने कहा, सभाके उद्देश्य साफ और सीधे प्रतीत होते हैं। अतएव यदि आप उद्देश्य-प्राप्तिके निमित्त परिश्रमसे काम करते रहेंगे तो आपको सफलता प्राप्त होगी, इसके बारे में मुझे कोई सन्देह नहीं है। जिस प्रकारका उद्देश्य आपके सामने है वैसे उद्देश्यकी सफलताके लिए सत्य और निर्भीकता परमावश्यक शर्ते हैं; और मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि आप सचाई, निर्भीकता और ईमानदारीसे काम करेंगे तो आपके प्रयत्न अवश्य सफल होंगे।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ५-३-१९२०

५४. भाषण: प्रेस अधिनियमपर, बम्बईमें[२]

५ मार्च, १९२०

जिस व्यक्तिने[३] इस अधिनियमको रद करवानेके लिए सबसे अधिक संघर्ष किया है वह आज यहाँ उपस्थित नहीं है, यह सरकार और जनता दोनोंके लिए शर्मकी बात है।

  1. काठियावाड़ हितवर्धक सभाकी स्थापनाके उपलक्ष्यमें माननीय श्री जी० के० पारेखकी अध्यक्षतामें मोरारजी गोकुलदास हॉलमें एक सार्वजनिक सभा हुई थी। गांधीजीने यह भाषण उसी अवसरपर दिया था।
  2. यह भाषण भारतीय समाचारपत्र संघके तत्वावधान में हुई एक सभाके अवसर पर दिया गया था, सभाकी अध्यक्षता सर नारायण चन्दावरकरने की थी। इसमें गांधीजीने एक प्रस्ताव द्वारा यह माँग की थी कि १९१० का समाचारपत्र अधिनियम रद किया जाये; एम० आर० जयकरने इसका समर्थन किषा था। राष्ट्रवादी, नरम दलीय तथा होमरूल लीगके सदस्य इस सभाके मंचपर एक साथ इकट्ठे थे।
  3. वी० जी० हाॅर्निमैन (१८७३-१९४८); पत्रकार और राजनैतिक आन्दोलनकर्ता, बॉम्बे क्रॉनिकलके सम्पादक जिन्हें अप्रैल १९१९ में भारतसे निर्वासित किया गया था और फिर उन्हें १९२६ तक भारत नहीं आने दिया गया था।