पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५९. वक्तव्य: समाचारपत्रोंको

[७ मार्च, १९२०][१]

श्री गांधीने अखबारोंको निम्न पत्र लिखा है:

खिलाफतका प्रश्न अब सभी प्रश्नोंसे अधिक महत्त्वपूर्ण बन गया है। यह एक प्रथम कोटिका साम्राज्यीय प्रश्न बन गया है।

इंग्लैंडके बड़े-बड़े ईसाई धर्माध्यक्ष और मुसलमान नेता, दोनों मिलकर इस प्रश्नको दुनियाके सामने ले आये हैं। ईसाई धर्माध्यक्षोंने चुनौती दी, और मुसलमान नेताओंने उसे स्वीकार कर लिया है।

मुझे विश्वास है कि हिन्दु भाई इस बातको महसूस करेंगे कि खिलाफतके प्रश्नके आगे सुधार[२] तथा अन्य सभी चीजें नगण्य है।

अगर मुसलमानोंका दावा उनके धर्मग्रन्थोंके अलावा अन्य सभी आधारोंपर अनुचित होता तो केवल धर्मग्रन्थोंके आधारपर ही उसका समर्थन करने में किसीको संकोच हो सकता था। लेकिन जब किसी उचित दावेको धर्मग्रन्थोंकी व्यवस्थाका समर्थन भी प्राप्त हो तब तो वह दुर्निवार ही हो जाता है।

संक्षेपमें दावा यह है कि टर्की साम्राज्यको गैर-मुस्लिम जातियोंकी सुरक्षाके पूरे आश्वासनके साथ टर्कीके यूरोपीय प्रजाजनोंको टर्कीके अधिकारमें ही रहने दिया जाये और इस्लामके तीर्थ-स्थलोंपर सुलतानका नियन्त्रण रहे तथा जज़ीरत-उल-अरब--यानी मुसलमान विद्वानों द्वारा परिभाषित अरबिस्तान--पर भी, अगर वहाँ रहनेवाले अरब लोग स्वशासन चाहें तो उन्हें स्वशासनका अधिकार देते हुए, सुलतानको राजनीतिक प्रभुता रहे। ऐसा ही करनेका वचन लॉयड जॉर्जने दिया था[३] और यही बात लॉर्ड हाडिंगके मनमें भी थी।[४] मुसलमान सिपाही टर्कीको उसके अधिकृत क्षेत्रोंसे वंचित करवानेके लिए कदापि न लड़ते। खलीफाको अरबिस्तानके स्वामित्वसे वंचित करनेका मतलब है खिलाफतको अर्थहीन बना देना।

जो-कुछ टर्कीका था, वह उससे जरूरी गारंटी लेकर उसे वापस कर देना सच्ची ईसाइयतके अनुरूप फल माना जायेगा, लेकिन उसे सजा देने के लिए उससे उसकी कोई

  1. खिलाफतके प्रश्नपर यह ज्ञापन-पत्र ७ मार्च, १९२० को जारी किया गया था।
  2. सन् १९१९ की मॉण्टेग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार योजना।
  3. अपने ५ जनवरी, १९१८ के भाषण में उन्होंने घोषणा की थी कि मित्रराष्ट्र इसलिए नहीं लड़ रहे हैं कि "टर्कीको उसकी राजधानी या एशिया माइनर तथा श्रेसके समृद्ध और प्रसिद्ध भूभागसे वंचित कर दिया जाये।"
  4. स्पष्टत: तात्पर्य २ नवम्बर, १९१४ को भारत सरकार द्वारा जारी की गई इस घोषणासे है कि इस युद्धसे किसी प्रकार के धार्मिक मामले का कोई सरोकार नहीं है। Gandhi