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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साथ, एक होकर बहा था और उसने हमारे पारस्परिक सम्बन्धको पूरी तरह सुदृढ़ कर दिया।

इन दोनों घटनाओंको किस प्रकार याद किया जाये, किस तरह उनकी स्मृतिको स्थायित्व प्रदान किया जाये? मेरा तो नम्र सुझाव है कि जो लोग ऐसा-कुछ करना चाहेंगे उन्हें आगामी ६ अप्रैलको (चौबीस घंटेका) उपवास रखना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए तथा ७ बजे सायं सारे भारतमें सार्वजनिक सभाएं करके रौलट अधिनियमके रद किये जानेकी कामना करते हुए इस राष्ट्रीय विश्वासको अभिव्यक्त करना चाहिए कि जबतक यह कानून रद नहीं हो जाता तबतक इस देशमें शान्ति नहीं स्थापित हो सकती। इस कानूनका अब कोई असर नहीं रह गया है, इतना ही काफी नहीं है। सवाल तो यह है कि यह अधिनियम या तो अपमानजनक है या अपमानजनक नहीं है। यदि यह अपमानजनक है तो इसे रद किया ही जाना चाहिए। अगर यह सुधारोंसे[१] पूर्व रद कर दिया जाये तो यह बात सरकारकी सद्भावनाकी द्योतक मानी जायेगी।

६ तारीखसे आरम्भ होनेवाला पूरा सप्ताह १३ तारीखको दुःखद घटनासे सम्बन्धित किसी कार्य में लगाया जाना चाहिए। इसलिए मैं नम्रतापूर्वक यह भी कहना चाहता हूँ कि यह सप्ताह जलियाँवाला बाग-स्मारकके लिए धन-संग्रहमें लगाया जाना चाहिए और यह स्मरण रखना चाहिए कि हमें जो रकम इकट्ठी करनी है वह दस लाख रुपये है। गबन और धोखेके विरुद्ध चौकस रहते हुए प्रत्येक गाँव या नगर अपनी धन-संग्रह योजना आप बनाये। धन-संग्रहका कार्य १२ अप्रैलके सायंतक समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

फिर रही १३ अप्रैलकी बात। यह पवित्र दिवस उपवास और प्रार्थनामें लगाया जाना चाहिए। इसमें किसी प्रकारका दुर्भाव या रोष नहीं होना चाहिए। हम निर्दोष मृतकोंकी स्मृति कायम रखना चाहते है, हम इस कृत्यमें निहित अन्यायको याद नहीं रखना चाहते। राष्ट्रका उत्थान बलिदान करनेके लिए तैयार रहनेसे होगा, बदला लेनके लिए तैयार रहने से नहीं। मैं यह भी चाहूँगा कि उस दिन हमारा राष्ट्र भीड़ द्वारा की गई ज्यादतियोंका[२] भी स्मरण करे और उनके लिए पश्चात्ताप करे। हम सप्ताहान्तमें भारत-भरमें सभाएँ करके प्रस्ताव पास करें, जिनमें साम्राज्यीय सरकार और भारत सरकार, दोनोंसे अनुरोध करें कि वे ऐसे प्रभावकारी कदम उठायें जिनसे इन दुःखद घटनाओंकी पुनरावृत्ति असम्भव हो जाये।

मैं यह भी अनुरोध करूँगा कि इस सप्ताहके दौरान प्रत्येक व्यक्ति --चाहे वह स्त्री हो या पुरुष--अपने-आपमें सत्याग्रह, हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्वदेशीके सिद्धान्तोंको यथाशक्ति और भी पूर्णतासे उतारनेका प्रयत्न करे। हिन्दू-मुस्लिम एकतापर जोर देनेके लिए मेरी सलाह यह है कि शुक्रवार, १२ अप्रैलको सायं ७ बजे हिन्दुओं और मुसलमानोंकी संयुक्त सभाएँ की जायें और उनमें खिलाफतके सवाल को मुसलमानोंकी उचित भावनाओंके अनुसार तय करने की मांग की जाये।

  1. सन् १९१९ के मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधार, जिन्हें उस समय कार्यरूप देनेकी प्रतीक्षा थी।
  2. अप्रैल १९१९ के उपद्रव।