इस प्रकार इस राष्ट्रीय सप्ताहको आत्मशुद्धि, आत्म-निरीक्षण, बलिदान, सही अनुशासन और लोगोंकी चिरपोषित राष्ट्रीय भावनाओंकी अभिव्यक्तिका सप्ताह बन जाना चाहिए। इसमें किसी प्रकारकी कटुताका आभास भी नहीं देना चाहिए और न ऐसे शब्दोंका ही प्रयोग करना चाहिए जिससे किसीको कष्ट पहुँचे। लोगोंको पूर्ण निर्भीकता और दृढ़ताका परिचय देना चाहिए।
क्या ६ तारीख और १३ तारीखको हड़ताल भी न की जाये? मेरा उत्तर है, नहीं, कदापि नहीं। जो लोग सत्य और अहिंसामें विश्वास रखते है उनके लिए यह सप्ताह सत्याग्रह सप्ताह है। ६ अप्रैलकी हड़ताल सत्याग्रह हड़ताल थी, क्योंकि वह सत्याग्रहका प्रारम्भ था। गत ६ अप्रैलकी हड़ताल यद्यपि स्वयंस्फूर्त थी, किन्तु वह बेजा दबावसे सर्वथा मुक्त न थी, क्योंकि उस दिन लोगोंको गाड़ियोंके उपयोग और ऐसे ही कुछ अन्य कार्य करने से मना तो किया ही गया था इसलिए मैं अनुशासन और प्रायश्चित्तके इस सप्ताहमें लोगोंको हड़ताल करने की सलाह नहीं दूँगा। इसके अतिरिक्त हड़ताल इतनी साधारण वस्तु भी न बना दी जानी चाहिए। वह बहुत असाधारण और कम अवसरोंपर की जानी चाहिए।
मैं सादर विश्वास करता हूँ कि सभी दलों और सभी वर्गोंके लोग इस राष्ट्रीय सप्ताहको मनाने में अपना पूरा योगदान देनेका प्रयत्न करेंगे और इसका उपयोग राष्ट्रीय जागरणकी दिशामें कुछ सच्ची और ठोस प्रगतिके लिए करेंगे।
यंग इंडिया, १०-३-१९२०
६२. क्या यह न्यायालयको मानहानि थी?[१]
इस प्रारम्भिक आदेशके[२] सम्बन्ध सुनवाई इसी मासकी ३ तारीखको माननीय न्यायमूर्ति मार्टिन, हेवर्ड और काजीजीके सामने हुई। 'यंग इंडिया' के सम्पादक श्री गांधी और प्रकाशक श्री देसाईको यह स्पष्ट करना था कि अहमदाबादके जिला-जज श्री कैनेडीने उच्च न्यायालयके पंजीयकको अहमदाबादके कुछ सत्याग्रही वकीलोंके कार्यके सम्बन्धमें शिकायत करते हुए जो पत्र भेजा था, उसे अपनी पत्रिकाके ६ अगस्त, १९१९ के अंक में टिप्पणी-सहित छापकर न्यायालयकी अवमानना करने के जुर्ममें उनपर मुकदमा क्यों न चलाया जाये।
प्रार्थीकी ओरसे ऐडवोकेट-जनरल माननीय सर टामस स्टैगमैन, सर्वश्री बहादुरजी और पोकॉक उपस्थित हुए। और श्री गांधी और श्री देसाई अपना पक्ष प्रस्तुत करनेके लिए स्वयं उपस्थित थे।