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१. खिलाफत

खिलाफतका[१] प्रश्न अर्थात् टर्कीके साथ समझौतेका सवाल इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसके सम्मुख अन्य सब प्रश्न कम महत्त्वके लगते हैं, क्योंकि इस प्रश्नके सन्तोषजनक हलपर हिन्दुस्तानकी शान्ति निर्भर करती है। फिलहाल अपने शस्त्रबलके द्वारा सरकार कृत्रिम शान्ति भले ही बनाये रखे, लेकिन यदि इस प्रश्नका सन्तोषप्रद हल न निकला तो शस्त्रबलके आधारपर स्थापित किया हुआ शान्तिका यह वातावरण लम्बे अर्सेतक नहीं टिक सकता। कुछेक प्रश्न ऐसे होते हैं कि जिनका निपटारा सन्तोषजनक न होनेपर उनके प्रति जो असन्तोषकी भावना होती है, उसे भी कालान्तरमें भुला दिया जाता है। लेकिन खिलाफतके प्रश्नका निपटारा यदि असन्तोषकारक हुआ तो यह असन्तोष कालान्तरमें भुलाया नहीं जा सकेगा बल्कि उसका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ेगा और उससे ज्यादा अशान्ति फैलेगी।

इसलिए प्रत्येक भारतीयका यह कर्तव्य है, वह पहले इस बातको अच्छी तरह समझ ले कि यह प्रश्न कैसा है और इसका निपटारा किस तरहसे किया जाना चाहिए; और फिर इसका सन्तोषपूर्ण हल निकालनेकी दिशामें प्रयत्न करे। जिस बातसे सात करोड़ मुसलमानोंका दिल दुखी होता है उससे हिन्दुओंको भी चोट पहुँचनी चाहिए। इसलिए हम समय-समयपर इस प्रश्नको जनताके सम्मुख पेश करने में हिचकिचाते नहीं हैं। इस विषय में जनताका जितना कर्तव्य है उतना ही सरकारका भी है।

माननीय वाइसराय महोदयके पास जो शिष्टमण्डल[२] गया था उसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही शामिल थे। वाइसराय महोदयका उत्तर विवेकपूर्ण था। उन्होंने शिष्टमण्डलके प्रति पूर्ण भद्रताके साथ व्यवहार किया और अपने बहुत सारे कार्योंसे समय निकालकर उससे भेंट की। इस सबके लिए शिष्टमण्डलको वाइसराय महोदयके प्रति अपना आभार प्रगट करना चाहिए। लेकिन इस बार सिर्फ विवेक और विनयसे ही मुसलमान भाइयों अथवा पूरी जनताको सन्तोष हो जाये, सो बात नहीं है। विवेकके बिना एक कदम भी नहीं बढ़ा जा सकता, लेकिन कभी-कभी निरे विवेकसे भी कार्य सिद्ध नहीं होता। यह अंग्रेजी कहावत कि चुपड़ी बातोंसे पेट नहीं भरता,[३] इस मौकेपर सही उतरती है।

वाइसराय महोदयने बताया कि टर्कीने मित्र-राष्ट्रोंके विरुद्ध तलवार उठानेकी जो भूल की यदि उसकी सजा टर्कीको भोगनी पड़े तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात

  1. १. खिलाफत आन्दोलनका उद्देश्य टर्कीके सुलतानको (प्रथम विश्व युद्धसे पूर्व) जो अधिकार प्राप्त थे उन्हें फिरसे दिलवाना था।
  2. २.२० जनवरी, १९२०। शिष्टमण्डलमें हकीम अजमल खाँ, मौलाना अबुल कलाम आजाद, अब्दुल बारी, मुहम्मद अली और शौकत अली तथा गांधीजी शामिल थे।
  3. ३. फाइन वईस बटर नो पारस्निप्स।
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