पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। इस तर्कको कोई भी मुसलमान स्वीकार नहीं कर सकता। जिस समय टर्की जर्मनीके साथ मिला उस समय तत्कालीन प्रधान मन्त्री श्री एस्क्विथने कहा था कि जर्मनीके साथ मिलने में सुलतानका कोई हाथ नहीं है, यह भूल थोड़ेसे तुर्क लोगोंकी है, और इसके लिए टर्कीको कष्ट सहन नहीं करना पड़ेगा। उक्त महोदयने ऐसा किसलिए कहा? विवेक-बुद्धि अथवा न्यासीकी खातिर नहीं, बल्कि ऐसा कहनेका मन्शा यह था कि मुसलमान सिपाहियोंमें अशान्ति न फैले। परिणाम भी मन्शाके मुताबिक हुआ। मुसलमान सिपाही अपनी वफादारीपर दृढ़ रहे। लोगोंको इस तरह आश्वस्त करने के लिए प्रयुक्त वचनोंको अब मेटा नहीं जा सकता। यदि मेटा गया और इससे मुसलमानोंके हृदयोंको चोट पहुँची तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं होगी। इसलिए माननीय वाइसराय महोदय द्वारा दी गई धमकी अथवा उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी, असन्तोषजनक ही कही जायेगी। उसके उत्तरमें शिष्टमण्डलने जो वक्तव्य प्रकाशित[१]किया है वह उचित है। हम आशा करते है कि सरकार वक्तव्यपर अधिकसे-अधिक ध्यान देगी।

मुसलमानोंकी माँग क्या है? खिलाफत अर्थात् टर्कीका राज्य । लड़ाईके समय उसकी जो सत्ता थी वह लगभग कायम रहनी चाहिए। उस राज्यमें मुसलमानोंके अलावा जो लोग हैं उनके हकोंको सुरक्षित रखने के लिए मित्र-राष्ट्र जो आश्वासन लेना चाहें वे भले ही लें लेकिन टर्कीकी सत्ता नष्ट' नहीं होनी चाहिए। उसी तरह अरब देशपर जिसे जज़ीरत-उल-अरब[२] कहते हैं, तथा मुसलमानोंके अन्य पवित्र स्थलोंपर खलीफाकी हकूमत रहनी चाहिए। यहाँपर आपत्ति उठाई गई है कि अरब लोग भी मुसलमान हैं। उन्हें अरबमें स्वराज्य क्यों न मिले? उसके उत्तरमें मुसलमान भाई कहते हैं कि जिसके अन्तर्गत अरबोंको स्वराज्य मिले ऐसी योजना भले ही बनाई जाये, लेकिन उनका दावा है कि उनपर मुसलमानोंके अतिरिक्त किसी दूसरेका शासन नहीं हो सकता। मुसलमान भाइयोंकी माँग बिलकुल उचित है, और उनकी माँगको अस्वीकार किया जाये तथा उसके फलस्वरूप अशान्ति फैले तो इसमें दोष मुसलमानोंका नहीं बल्कि सरकारका माना जायेगा।

सरकारने मुसलमानोंकी माँगको शान्ति सम्मेलनके सम्मुख सही ढंगसे रखा है; लेकिन इतना करना ही पर्याप्त नहीं है। सरकार इस प्रश्नको अपना ही प्रश्न मानने के लिए बँधी हुई है। सरकार जिस हदतक ईसाइयोंकी है उसी हदतक मुसलमानों और हिन्दुओंकी भी है। और जिस तरह वह ईसाइयोंके अधिकारोंको दरगुजर नहीं कर सकती वैसे ही वह मुसलमानोंके अधिकारोंको भी दरगुजर नहीं कर सकती।

[गुजरातीसे]
नवजीवन,१—२—१९२०
  1. १.२० जनवरी, १९२०।
  2. २. इसका शाब्दिक अर्थ है "अरबका द्वीप समूह" इसमें सीरिया, फिलस्तीन और मेसोपोटामिया तथा अरब प्रायद्वीप आते हैं।