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१०. पत्र : एस्थर फैरिंगको

बुधवार [४ फरवरी, १९२०][१]

रानी बिटिया,

तुम्हारे पत्र मिल गये हैं। जो हो गया उसपर अब पछताना बेकार है। सवाल यह है कि अब बात सुधरे कैसे ? ईस्टरके अवसरपर या चाहे जब तुम अवश्य ही जहाँ चाहो जा सकती हो। सबसे ज्यादा ध्यान तुम्हारे मानसिक सुख और आध्यात्मिक आनन्दका रखना है। जिस 'अनियमितता' की बात तुम लिख रही हो, उसका एल० के० द्वारा परीक्षित एक अत्युत्तम इलाज है--वह यह कि कटिस्नान और घर्षण स्नानका अभ्यास करना, अलोना तथा अन्य बिना मसालोंवाला भोजन करना। इसपर आश्रममें हमारे पास एक पुस्तक है। उसे पढ़ लेना। इस बातको कि यह पुस्तक आश्रम में है एस० के० और अन्य लोग जानते हैं। बाने भी इन विधियोंको अनेक वर्षोंतक आजमाया है और बहुत लाभ उठाया है। जबतक तुम वहाँ हो, इन्हें जरूर आजमाओ। डबलरोटी मँगाने में संकोच हरगिज मत करना। वह बहुत आसानीसे मिल जाती है।

मैं तुम्हारी इस बातसे सहमत हूँ कि तुम्हें शान्तिपूर्वक भगवद्चिन्तनके लिए समय मिलना ही चाहिए। तुम अहमदाबादके गिरजाघरमें क्यों नहीं जातीं? मेरा यह आशय नहीं है कि तुम कॉन्वेंटमें न जाओ। ईश्वर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा और शक्ति तथा प्रकाश देगा।

स्नह और मंगल कामनाओं सहित,

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. १. पत्रमें लिखी बातोंसे प्रतीत होता है कि यह पत्र एस्थर फैरिंगको १ फरवरीको लिखे गये पत्रोंके एकदम बाद ही लिखा गया होगा; और १९२० में १ फरवरीके बाद पहला बुधवार ४ फरवरीको पड़ा था।