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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५९७

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२५०. मुसलमानोंका आवेदनपत्र[]

मुसलमानोंके सामने जो संघर्ष उपस्थित है उसके लिए वे धीरे-धीरे परन्तु दृढ़ता पूर्वक तैयार हो रहे हैं। उन्हें ऐसी कठिन परिस्थितियोंके विरुद्ध लड़ना है जो निःसन्देह दुर्गम हैं, परन्तु पैगम्बरके सामने जैसी विपरीत परिस्थितियाँ थीं, उनके मुकाबले तो ये कुछ भी नहीं हैं। उन्होंने अपने जीवनको कितनी बार खतरेमें नहीं डाला था? परन्तु ईश्वर में उनका विश्वास अटूट था। वे निर्भयतापूर्वक आगे बढ़े, क्योंकि वे सत्यका प्रतिनिधित्व कर रहे थे और खुदा उनकी तरफ था। पैगम्बरको ईश्वरमें जैसी अडिग निष्ठा थी, यदि उनके अनुयायियोंमें उसकी आधी भी होगी और जैसी त्याग-भावना पैगम्बर की थी उसकी आधी भी त्याग-भावना उनमें होगी तो जो प्रतिकूल परिस्थितियाँ हैं वे अनुकूल बन जायेंगी और कुछ ही दिनोंमें वे टर्कीको बरबाद करने-वालोंके ही खिलाफ हो जायेंगी। मित्र राष्ट्रोंकी लूट-खसोट उनको हानि पहुँचाने ही लगी है। फांसको अपना काम कठिन लग रहा है।[] ग्रीस अपने अनुचित रूपसे पाये हुए लाभको पचा नहीं पा रहा है।[] और इंग्लैंडके लिए मेसोपोटामिया एक कठिन समस्या बन गया है।[] ब्रिटेनने मनमानी करके जो आग भड़काई है उसमें मोसलमें[] निकलने वाला तेल ईंधनका काम करेगा, और इस प्रकार ब्रिटेन स्वयं अपने हाथ जला बैठेगा। समाचारपत्रोंका कहना है कि अरबके लोग अपने यहाँ हिन्दुस्तानी फौजें पसन्द नहीं करते हैं। मुझे इसमें आश्चर्य नहीं। वे उग्र स्वभाववाले और वीर पुरुष हैं; वे यह नहीं समझ पाते कि भारतीय सिपाही मेसोपोटामिया में क्यों हों। असहयोगका परिणाम जो भी निकले, मैं चाहता हूँ कि एक भी भारतीय मेसोपोटामिया के लिए अपनी सेवाएँ अर्पित न करे। चाहे वह असैनिक विभागकी सेवा हो, अथवा सैनिक। हमें स्वयं विचार करना सीखना चाहिए और किसी नौकरीमें प्रविष्ट होनेके पूर्व यह देखना चाहिए कि वैसा करके कहीं हम अन्याय करनेके साधन तो नहीं बन रहे हैं। खिलाफतके सवालके अतिरिक्त, शुद्ध न्यायको दृष्टिसे भी मेसोपोटामियापर कब्जा रखनेका अंग्रजोंको कोई हक नहीं। किसी भी रूपमें हमारी देशभक्तिका यह अंग नहीं कि हम साम्राज्य सरकारकी एक ऐसे काममें मदद करें जिसे साफ शब्दोंमें कहें तो दिनदहाड़े की जानेवाली डाकाजनी है। अतएव यदि हम जीविका कमानेके लिए मेसोपोटामियामें सैनिक या असैनिक नौकरी करते हैं तो हमारा कर्त्तव्य यह देखना है कि उसका स्रोत तो दूषित नहीं है। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि असहयोगका नाम लेते ही बहुत से लोग कतराने लगते हैं। असहयोगके समान स्वच्छ, हानिरहित और

  1. यह आवेदनपत्र २२ जून, १९२० को सुन्नी मुसलमानों द्वारा वाइसरायके पास भेजा गया था। मूल पाठके लिए देखिए परिशिष्ट ६।
  2. २.० २.१ २.२ देखिए परिशिष्ट १।,
  3. मेसोपोटामियाका एक प्रदेश।