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टिप्पणियां

देखा तक नहीं है, जिनके साथ दादाभाई कदापि भोजन नहीं करते, ऐसे कोढ़से पीड़ित भारतीय भी इस वकीलकी पूजा करते हैं। गोखलेकी[१] नि:शुल्क वकालतने उन्हें अमरत्व प्रदान किया है। यदि बाईस करोड़ हिन्दू खिलाफतके प्रश्नपर ज्ञानपूर्वक मुसलमानोंकी वकालत करें तो मेरा खयाल है कि वे आठ करोड़ मुसलमानोंके मनको सदाके लिए अपने हाथमें कर लें। मौलाना अब्दुल बारी साहबके[२] यहाँ में प्रेमभावसे रहा। उन्होंने मेरे लिए ब्राह्मण रसोइया बुलाया और मेरे लिए दूध उसके हाथों गरम करवाया। वे स्वयं मांसाहारी है, लेकिन मुझे अपने घर में मांस तो देखने भी न दिया। उन्होंने ऐसी मर्यादाका पालन किया, इससे हम दोनोंके बीचको मित्रता बढ़ी ही, घटी नहीं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-२-१९२०

४७. टिप्पणियाँ

श्रीमती बेसेंटका अपमान

हम देखते हैं कि बम्बईमें[३] लालाजीके[४] खागतके लिए जो सभा हुई थी उसमें कुछ श्रोताओंने श्रीमती बेसेंटका[५] अपमान किया। यह सुनकर हमें अत्यन्त खेद हुआ। भारतमें जिस समय हम नवीन और सुन्दर जीवनकी आस लगाये बैठे हैं उस समय अविनय और आने से विपरीत विवार रखनेवाले व्यक्तियोंके प्रति तिरस्कारका व्यवहार हमारी उन्नति में बाधा पहुँचाने वाली बातें है। सार्वजनिक जीवन में प्रतिस्पर्धीके प्रति विनय, मान और सहिष्णुता अत्यन्त आवश्यक है। श्रीमती बेसेंटका अपमान हो, यह हमारे लिए कलंककी बात है। इस भली महिलाने थोड़े वर्षों में हिन्दुस्तानकी जो अनन्य सेवा की है उतनी सेवा बहुत कम भारतीयोंने की है। इस समय भले ही हमें उनके विचार नापसन्द हों, भले ही हमें उनकी भूलें दिखाई दें, तो भी जिसने हिन्दुस्तानकी भारी सेवा की है और जो अपनी उत्तरावस्था में एक नवयुवककी भाँति उत्साह प्रकट करते हुए अब भी भारतको आगे ले जाने में अपना सक्रिय सहयोग देती रहती हैं उनका

  1. गोपाल कृष्ण गोखले (१८६६-१९१५); शिक्षा-शास्त्री और राजनीतिश; १९०५ में कांग्रेसके अध्यक्ष; भारत सेवक समाज (सर्वेन्टस ऑफ इंडिया सोसाइटी) के संस्थापक; इन्होंने गिरमिटिया मजदूरोंके मामलेको सफलतापूर्वक हिमायत की थी।
  2. (१८३८-१९२६); लखनऊके राष्ट्रवादी मुस्लिम, जिन्होंने खिलाफत आन्दोलनमें सक्रिय भाग लिया था और अपने अनुयायियोंसे गो-हत्या वन्द करनेका अनुरोध किया था।
  3. २० फरवरी, १९२० को।
  4. लाला लाजपतराय (१८६५-१९२८); पंजाबके राष्ट्रवादी नेता । वे भारतसे छ: वर्ष बाहर रहनेके बाद २० फरवरी, १९२० को बम्बई पधारे थे और वहाँ उनका भारी स्वागत किया गया था।
  5. श्रीमती बेसेंट गांधीजीकी नीतिसे असहमत थीं और मई १९१९ में उन्होंने होमरूल लीगको छोड़ दिया था जिसकी उन्होंने १९१६ में स्थापना की थी।