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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपमान करके हम स्वयं अपना अपमान करते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इस प्रकारकी विषैली वायुको तुरन्त दूर करें।

श्रीमती सरलादेवी चौधरानी

आजकल सरलादेवीजी अहमदाबाद आई हुई हैं, इसलिए 'नवजीवन' के पाठकोंको उनका थोड़ा-बहुत परिचय देना अनुचित नहीं माना जायेगा। सरलादेवीके नामसे सामान्यतया सब लोग परिचित है, लेकिन वे सिर्फ यही जानते हैं कि श्रीमती सरला- देवी सार्वजनिक जीवन में कार्य करनेवाली एक विद्वान् महिला हैं। इनका विशेष परिचय तो यह है कि वे सर रवीन्द्रनाथ ठाकुरकी भानजी हैं, कांग्रेसके भूतपूर्व प्रसिद्ध मन्त्री स्वर्गीय श्री घोषालकी पुत्री हैं और पंजाबके सुप्रसिद्ध पंडित रामभजदत्त चौधरीकी धर्मपत्नी हैं। इन्होंने १९ वर्षकी अवस्थामें बी० ए०की परीक्षा पास की और तभीसे किसी-न-किसी सार्वजनिक कार्य में भाग लेती रही हैं। 'भारती' नामका बंगाली मासिक पत्र इन्होंने ही आरम्भ किया, और कहा जाता है कि उसमें इन्होंने अपनी लेखनीकी शक्तिका खूब परिचय दिया। इनकी कवित्व शक्ति ऊँचे स्तरकी है और बनारस में गाया गया उनका 'नमो हिन्दुस्तान' नामका मधुर गीत सर्वत्र विख्यात है। बंगालमें समितियोंकी स्थापना करने में श्रीमती सरलादेवीने प्रमुख भाग लिया था; और जब युद्ध आरम्भ हुआ तब शिक्षित बंगाली फौज में भरती होकर अपना कर्तव्य निभायें, इस बातका प्रचार जिस प्रभावशाली ढंगसे इन्होंने किया था उतना बहुतकम बंगालियोंने किया होगा। पंजाब में भी सार्वजनिक आन्दोलनमें इस महिलाका हाथ दिखाई देता है। उनमें काव्य-सर्जनकी जितनी शक्ति है उससे शायद कहीं अधिक संगीतकी शक्ति है। इसी कारण कांग्रेसमें सदा उनकी मांग की जाती है। पंडित रामभजदत्त में भी कुछ हदतक कवित्वकी शक्ति है। उनकी एक कविता अत्यन्त प्रभावशाली और लोकप्रिय है। वह गुरुमुखीमें है और हजारों पुरुष उसे गाते हैं। वह कविता कांग्रेस अधिवेशनमें[१] गाई गई थी और इसके लिए सरलादेवीने कुछ बालक और बालिकाओंको तैयार किया था। वह लगभग सत्याग्रहियोंके गीतके रूपमें काम दे सकती है। इस कारण हम इसे इस अंकके पहले पृष्ठपर प्रकाशित कर रहे हैं और उसके साथ कठिन शब्दोंके अर्थ भी दे रहे हैं।

नडियावमें स्वदेशीका प्रचार

स्वदेशीका प्रचार करने के लिए नडियादमें स्वदेशी भण्डार लिमिटेड कम्पनी बनाई गई है। उसमें लाख-लाखके कुल दस शेयर है और दस हजार शेयर दस-दस रुपयेके हैं। यह उपक्रम इस उद्देश्यको ध्यान में रखकर किया गया है कि नडियाद आदि गांवों में शुद्ध और मिश्रित रूपसे स्वदेशी व्रतका पालन करनेवालोंको आवश्यक कपड़ा मिल सके तथा हाथसे कते और बुने हुए कपड़ेका प्रचार किया जा सके। कम्पनी अधिकसे-अधिक सवा छ: प्रतिशत नफा ले सकती है तथा एजेंटोंका कमीशन शुद्ध लाभका २५ प्रतिशत निर्धारित किया गया है। यह उपक्रम लाभ कमानेके उद्देश्य से नहीं बल्कि

  1. दिसम्बर १९१९ के अमृतसर अधिवेशनमें।